इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगी गन्ने की खेती
- खांडसारी मिल बंद होने से टूटे किसान
- गुड़ तक सिमटा गन्ने की पैदावार
मंडला महावीर न्यूज 29. आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला पहले गन्ने की खेती के लिये प्रसिद्ध हुआ करता था लेकिन जिले में संचालित दो खाण्डसारी चीनी मिल के बंद होने के बाद इसका दायरा सीमित क्षेत्रों तक सिमट कर रह गया। गन्ने की खेती क्षेत्र में अब गिने चुने गांवों में ही होती है। इसके पीछे प्रमुख कारण सरकार द्वारा किसानों को गन्ने की फसल के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है। बताया गया कि लागत अधिक व फायदा कम होने के कारण क्षेत्र के किसानों का इस खेती से प्रत्येक साल मोह भंग होता जा रहा है। अगर समय रहते सरकार द्वारा कोई प्रोत्साहन नीति नहीं बनाई गई तो आने वाले कुछ वर्षों में इसकी खेती इतिहास के पन्नों में सिमट जायेगी। सरकारी आंकड़े अनुसार जिले में करीब तीन हजार हेक्टेयर में गन्ने की फसल लगाई जा रही है।
जानकारी अनुसार जिले के गन्ना उत्पादक किसान खाण्डसारी चीनी मिल बंद होने से टूट गए है जो किसान गन्ना की फसल ले रहे है, वह गन्ना सिर्फ गुड़ बनाने के काम आ रहा है। इससे किसानो को कोई ज्यादा फायदा नहीं है। अब किसान फिर से खाण्डसारी चीनी मिल खोलने की मांग कर रहे है। गन्ना उत्पादक किसानो का कहना है कि मंडला में गन्ना फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए शासन स्तर से गन्ना विकास कार्यक्रम संचालित किया जाए। जिसका फायदा यहां के करीब तीन हजार हैक्टेयर भूमि में गन्ना लगाने वाले किसानो को मिल सकें।
घाटे के कारण बंद हो गई खाण्डसारी मिल
किसानों ने बताया कि मंडला में गन्ना उत्पादन को देखते हुये यहां रायपुर रोड में दो खाण्डसारी मिल संचालित थी, जो विगत कई वर्षो पहले ही बंद हो चुकी है। बताया गया कि खाण्डसारी मिल में गन्ने के दाम कम मिलने के कारण अधिकत्तर किसान गन्ने से गुड़ बना लिया करते है। जिसके कारण खाण्डसारी मिल में गन्ना कम जाने लगा। वहीं उपेक्षा के शिकार गन्ना किसान बिना कार्यक्रम के इसकी पैदावार बढ़ाने में संकोच कर रहे है। क्षेत्र में करीब तीन हजार हेक्टेयर में गन्ने की फसल किसान लगा रहे है, गन्ने की फसल आने के बाद किसानो का रूझान गुड बनाने की तरफ बढ़ गया। जिसके चलते मिल में पर्याप्त गन्ना नहीं पहुंच पाया। लगातार घाटे में चल रही खाण्डसारी मिल को मलिक ने बंद कर दिया है। इसके बाद जो गन्ना खाण्डसारी मिल में करीब 240 रूपए प्रति क्ंिवटल में बेचा जाता था। अब गुड़ बनाने वाले व बिचौलिया इसे कम कीमत में ले रहे है। इससे किसानो को नुकसान झेलना पड़ रहा है।
जिले के बाहर जाता है मंडला का गुड़
बताया गया है कि अब जिले में खाण्डसारी मिल बंद हो जाने के बाद गन्ना उत्पादक किसान गन्ना से गुड़ बनाने का काम करते है ओर अन्य छोटे किसान बड़े किसानों को अपने गन्ने की फसल गुड़ बनाने के लिए बेच देते है। मंडी में विक्रय करने के बाद मंडला का यह गुड़ बिहार, छत्तीसगढ़ के साथ प्रदेश के सतना कटनी, जबलपुर समेत अन्य जिलो में सप्लाई किया जाता है। जहां मंडला के गुड़ की अधिक मांग है। अभी कृषि मंडी में गुड़ की आवक हो रही है। गुड़ के दाम भी मंडी में एक हजार से पन्द्रह सौ रूपए मन चल रहा है। गुड़ की गुणवत्ता अनुसार मंडी में गुड़ के दाम तय किए जाते है। गुड़ बनाने से भी किसानों को मामूली मुनाफा ही होता है।
सिमटी गन्ने की खेती
जिले में गन्ने की खेती का दायरा दिन प्रतिदिन सिमटता जा रहा है। विगत वर्षो पहले क्षेत्र के पुरवा, सकवाह, रामबाग, कौरगांव, हिरदेनगर, पदमी, सेमरखापा, भपसा, पीपरपानी, मुगदरा, धनौरा, करियागांव समेत आसपास के ग्रामों में गन्ने की खेती वृहद पैमाने पर की जाती थी। उस वक्त ग्राम पुरवा के नजदीक खाण्डसारी शुगर मिल में गन्ना विक्रय केन्द्र होने के चलते किसानों को उनकी फसलों का उचित भाव आसानी से मिल जाता था लेकिन मिल को घाटे के कारण शुगर मिल बंद कर दी गई। जिसके बाद किसान आर्थिक रूप से बदहाल होने लगे और गन्ने की जगह धीरे-धीरे गेहूं, धान, आलू सहित कई अन्य फसलों ने स्थान लेना शुरू कर दिया। अब जिले में करीब तीन हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती सिमट कर रह गई है।
एक साल में तैयार होती है फसल
क्षेत्रीय किसानों ने बताया कि गन्ने की फसल तैयार होने में लगभग एक साल का समय लग जाता है और बुआई के समय कुल लागत खर्च प्रति एकड़ करीब 8 से 10 हजार रूपये आती है। किसानों ने बताया कि गन्ने की बुआई साल के जनवरी व फरवरी माह में होती है। बहरहाल, किसानों को लागत खर्च वसूलने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है लेकिन उनके पास सिर्फ दो ही विकल्प होते हैं या तो वे ग्रामीण हॉकरों को बेचें या उसे गुड़ बनाकर बाजारों में बेच दें। किसानों को गन्ने के रस से गुड़ बनाने में ढाई से तीन घंटे का समय लगता है। तैयार होने के बाद उसे मंडला मंडी और बाजारों में बेच दिया जाता है।
इनका कहना है
मंडला में खाण्डसारी मिल बंद हो जाने के कारण गन्ना उत्पादक किसानो को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। गुड़ के लिए गन्ना क्रय करने वाले समूह को कम दामो में गन्ना बेचना पड़ रहा है। जिससे किसानो को नुकसान हो रहा है। गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई काम नहीं किया जा रहा है। भारतीय किसान संघ का कहना है कि प्रशासन के सहयोग से खाण्डसारी मिल खोली जाए।
श्री राम सिंधिया, भारतीय किसान संघ अध्यक्ष
मंडला में दो खाण्डसारी मिल थी, जिसके बंद हो जाने के कारण गन्ना उत्पादक किसानो को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। हम अब गुड़ बनाकर मंडी में बेच रहे है, लेकिन मेहनत के मुताबिक गुड़ बेचने पर फायदा नहीं हो रहा है। जिसके कारण गन्ने की फसल अब कम कर दी है। गन्ने का रकबा करीब आधा हो गया है, अन्य फसलों को प्राथमिकता दे रहे है।
मंडला का गुड़ प्रदेश के बाहर भी अपनी मिठास के लिए प्रसिद्घ है। गन्ना की खेती नगद खेती कहलाती है जिसके चलते यहां का गन्ना का रकबा अच्छा था, जिसके कारण खाण्डसारी मिल की स्थापना हुई, मिल अनेक वर्षों तक चली, लेकिन अचानक इसके बंद हो जाने से जिले में खाण्डसारी का उत्पादन बंद हो गया। अब किसानों को मेहनत के मुताबिक दाम नहीं मिल पाता है।
पवन भांवरें, मरार टोला, माधोपुर
मुख्यालय के आसपास के सभी क्षेत्रों में गन्ने की फसल लगाई जाती थी, पहले दो खंडसारी मिल थी, लेकिन अब गन्ने की फसल बेचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण गुड़ बनाकर मंडी में बेचा जाता है, यहां जिले के बाहर के व्यापारी गुड़ खरीदी करते है, जिसके कारण बाहर भी जिले के गुड़ की मांग अधिक है, लेकिन उचित दाम ना मिलने के कारण किसानों का रूझान गन्ने की फसल से हटता जा रहा है।