- ♦ तीन हजार हेक्टेयर पर सिमट गया गन्ने का रकबा
- ♦ गन्ने की फसल के प्रति किसानों का रूझान कम
- ♦ कई वर्षो से गन्ने की फसल हुई समिति, दूसरी फसल के प्रति बढ़ा रूझान
मंडला महावीर न्यूज 29. गन्ने की फसल की जगह किसान अब अन्य फसलों की तरफ अपना रूझान करने लगे है। विगत छह वर्षो में गन्ने की फसल का रकबा नहीं बढ़ा है। विगत वर्ष 2021-22 में गन्ने का रकबा 2.70 हजार हेक्टेयर, वर्ष 2022-23 में 2.80 हजार हेक्टेयर, 2023-24 में 03.0 हजार हेक्टेयर था। इस वर्ष 2024-25 में भी तीन हजार हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य रखा गया है। इस वर्ष गन्ने के रकबे में विगत वर्ष की अपेक्षा रकबे में कोई ज्यादा बढ़ नहीं हुई है। विगत छह वर्षो में गन्ने का रकबा 3 हजार हेक्टेयर के आसपास ही है। इसके पहले तीन हजार हेक्टेयर से कम का रकबा वर्ष 2021-22 में 2.70 हजार हेक्टेयर था। जिसके कारण किसानों का गन्ने की फसल की तरफ कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई है। अन्य फसलों की तरफ बढ़ते रूझान के कारण गन्ने का रकबा अन्य फसलों की अपेक्षा कम ही है।
जानकारी अनुसार जिले के गुड़ की प्रदेश में अपनी अलग पहचान है। जिले के गुड़ की मांग भी अधिक है। यहां बिना मिलावट और किसानों के प्रयास से गुड़ की गुणवत्ता काफी अच्छी है लेकिन अब किसानों का रूझान गन्ना के प्रति कम होने लगा है। क्योंकि पहले किसान कुछ गन्नों को गुड़ बना लेते थे तो शेष गन्ने को सुगर मिल में बेच देते थे लेकिन जब से शुगर मिल बंद होने से किसानों ने गन्ना का उत्पादन कम कर दिया है।
बताया गया कि शासन की ओर से जिले के गन्ना किसानों के लिये कोई योजना नहीं बनाई जा रही है। पिछले कुछ सालों से गन्ने का उत्पादन घटता जा रहा है। इस बार भी समर्थन मूल्य में गन्ना विक्रय के लिये कोई व्यवस्था नहीं है। गुड़ के दाम भी खास नहीं होने के कारण अधिकांश किसान अब गन्ने की फसल से दूरी बनाते जा रहे है। जिन किसानों ने इस वर्ष गन्ने की फसल लगाई थी, वे अब अन्य फसल लगाने की तैयारी कर रहे है। कुछ किसान गन्ने के स्थान पर गेहूं की बोवनी की तैयारी कर रहे है।
किसानों का कहना है कि गन्ने की बोवनी एक बार करने के बाद यह फसल तीन साल तक देती है। लेकिन इस बीच खेत खाली होने से किसान उसमें दूसरी फसलें नहीं ले पाता है। एक तरह से किसान के खेत गन्ने के लिये रिजर्व हो जाता है। उसमें भी यदि किसान को सही कीमत न मिले तो किसानों का मायूस होना स्वाभाविक है। दूसरे जिले में गन्ना का समर्थन मूल्य करीब 250 रूपये प्रति क्विंटल के आसपास है। वहीं जिले में करीब 180 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसान गन्ना बेंचने को मजबूर है।
अधिकांश किसानों का कहना है कि जिस तरह वर्तमान समय में गन्ने के जो भाव चल रहे है, उससे लागत निकालना भी मुश्किल होता है। मेहनत तो दूर की बात है। जिसके कारण पिछले वर्ष तक लोग तीन साल तक खेतों में गन्ने की फसल रखते थे लेकिन इस बार किसान दो ही वर्ष में गन्ने की फसल मिटाकर गेहूं की फसल या अन्य फसलें लगा रहे है। जब किसानों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस समय गन्ने की फसल लगाने में भी अधिक लागत आ रही है। वहीं इसके रखरखाव के चलते भी ज्यादा मेहनत गन्ने में लगती है। यही कारण है कि अधिकांश किसान दो वर्ष के बाद गन्ने को मिटाकर गेहूं की फसल और अन्य फसलों की तरफ अपना रूझान बढ़ा रहे है।
बढ़ा गेहूं का रकबा
जानकारी के अनुसार इस वर्ष गन्ने का रकबा 3.0 हजार हेक्टेयर है। जबकि विगत वर्ष भी तीन हजार हेक्टेयर रकबा था। जिले के कम ही किसानों ने ही गन्ने की बोवनी की है। वहीं गेहूं का रकबा प्रति वर्ष बढ़ता जा रहा है। इस बार गेहूं का रकबा करीब 51 हजार हेक्टेयर है। कृषि विभाग के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष गेहूं की बोवनी के लक्ष्य में थोड़ा इजाफा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ गन्ना का रकबा तीन हजार हेक्टेयर में सिमट कर रह गया है। लगातार गन्ने के दाम कम होने के कारण किसान गन्ने की जगह गेहूं, चना समेत अन्य फसल पर अधिक जोर दे रहे है। मौसम भी इन फसलों के अनुकूल है, जिसके चलते किसानों को भी लगता है कि इस बार गेहूं चना की फसल में गन्ने की तुलना में अधिक मुनाफा होगा।
इनका कहना है
क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन तो हो रहा है लेकिन सुगर मिल ना होने के कारण उससे वाजिब दाम नहीं मिल रहे है। जिसके कारण किसानों द्वारा गन्ने का रकबा कम किया जा रहा है और अन्य फसलों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
राजेश कछवाहा, कौरगांव
सरकार की लचर कार्यप्रणाली और गन्ने व गुड़ का उचित दाम नहीं मिलने के कारण गन्ने के रकबे में कमी आई है। अब गन्ने की फसल की तरफ से क्षेत्र के किसानों का मोह भंग होता जा रहा है और किसान गेहूं, चना और अन्य फसलों पर ध्यान दे रहे है।
संगीत ठाकुर, रामनगर
क्षेत्र के किसानों को गन्ने की फसल से ज्यादा आर्थिक लाभ नहीं हो रहा है, साथ ही शुगर मिल बंद होने से गन्ने की फसल में काफी प्रभाव पड़ा है। जिसके कारण किसान अब गन्ने की जगह अन्य फसलों को लगाने में फायदा मान रहे है।
रामकुमार कछवाहा, पुरवा
गन्ने की फसल के स्थान पर अब क्षेत्र के किसान गेहूं व अन्य फसलों को लगाने में रूचि दिखा रहे है। धीरे-धीरे क्षेत्र से गन्ने का रकबा कम होता जा रहा है। उचित मूल्य और मंडी में गुड के भाव सही ना मिलने से गन्ने की फसल की तरफ किसान ध्यान अब कम देने लगे है।
राकेश कछवाहा, पीपरपानी