बैगा को वन भूमि से बेदखल कर वृक्षारोपण की तैयारी

  • बैगा को वन भूमि से बेदखल कर वृक्षारोपण की तैयारी
  • वन अधिकार समिति का हुआ गठन
  • अब दस्तावेज पूर्ण कर देंगे वन अधिकार के दावें

मंडला महावीर न्यूज 29. विकासखंड मवई के जमगांव दादर मेंढ़ा में आदिवासी बैगा परिवारों को वन भूमि की कब्जे वाली भूमि से बेदखल किया जा रहा है। विगत बीस वर्षों से वन भूमि पर खेती कर रहे बैगा परिवारों को बेदखल कर उक्त भूमि पर वन विभाग द्वारा गड्ढे कराकर पौधरोपण की तैयारी कर रहा है। गांव के मानसिंह निमोनिया, बैसाखु मुर्खिया, नंद कुमार धुर्वे, बुधराम मरावी, वन अधिकार समिति अध्यक्ष राम रतन मरावी, सुभरन बाई, संगीता विश्वकर्मा आदि ने कलेक्टर से तत्काल हस्तक्षेप करते हुए न्याय दिलाने की गुहार की है।

जानकारी के अनुसार वर्ष 2001 में उक्त भूमि को लेकर 44 बैगा आदिवासी के ऊपर जमीन अतिक्रमण का मामला भी बनाया गया था। वर्ष 2006 में बने वन अधिकार कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि 13 दिसंबर 2005 के पूर्व वन भूमि काबिज आदिवासियों को वन भूमि का अधिकार पत्र मिलेगा, जो उक्त भूमि पर खेती कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। इन बैगा परिवारों के पास भी इस जमीन के अलावा अन्य कोई कृषि भूमि नहीं है।

समाजिक कार्यकर्ता चरन सिंह परते ने बताया कि वन भूमि पर खेती कर रहे बैगा परिवारों ने वन अधिकार का अपना व्यक्तिगत दावा प्रपत्र पंचायत में प्रस्तुत किया था। इस लंबित दावों का आज तक निराकरण नहीं हुआ है। जबकि वन अधिकार कानून 2006 की कंडिका- 4 (5) में स्पष्ट प्रावधान है कि जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, किसी वन में निवास करने करने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य परंपरागत वन निवासियों का कोई सदस्य उसके अधिभोगाधीन वन भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जाएगा या हटाया नहीं जाएगा जब तक कि मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। विगत एक माह से जबरन वन विभाग एवं कुछ गांव के लोगों के सहयोग से बैगा परिवार की जमीन पर पौधरोपण के लिए गड्ढा किया जा रहा है। जबकि उक्त भूमि पर बड़े डोली, बांधा खेत और प्रधानमंत्री आवास तक बने हैं।

वन अधिकार कानून की जानकारी नहीं

बताया गया कि विकासखंड मवई के जमगांव दादर मेंढ़ा में आदिवासी बैगा परिवारों और ग्राम पंचायत को भी वन अधिकार कानून की जानकारी नहीं है। जिसके कारण वन भूमि में खेती कर रहे बैगा परिवार का दावा आज तक ग्राम से आगे नहीं पहुंच पाया है। जबकि वन अधिकार कानून के तहत वन अधिकार के लिए किये गए दावे में वन अधिकार समित के अध्यक्ष और सचिव द्वारा ग्राम सभा में सभी संबंधित अधिकारी, कर्मचारी की उपस्थिति में प्रस्ताव पारित किया जाता है। जिसके बाद वन अधिकार के लिए किया गया दावा ग्राम स्तर से तहसील स्तर पर और उसके बाद जिला स्तर पर पहुंचकर उस दावा को अनुमोदित किया जाता है। जिसके बाद वन भूमि में काबिज हितग्राही को वन अधिकार का पट्टा दिया जाता है, लेकिन ग्राम में विगत कई वर्षो से वन अधिकार कानून की किसी को कोई जानकारी नहीं है। ना ही यहां वन अधिकार समिति का गठन किया गया था। जानकारी के अभाव में अब ये बैगा परिवार परेशान हो रहे है। इनकी वन भूमि पर वन विभाग पौधारोपण करने की तैयार कर रहा है।

विगत दिवस बनाई गई वन अधिकार समिति 

बताया गया कि वन भूमि में काबिज बैगा आदिवासी परिवारों को न्याय दिलाने विगत दिवस 13 जनवरी को वन अधिकार समिति का गठन किया गया है। जिसमें अध्यक्ष और सचिव बनाए गए है। इस समिति के गठन के बाद वन अधिकार के लिए ग्राम सभा आयोजित की गई। वन भूमि में काबिज बैगा आदिवासी परिवार अब अपने दस्तावेज पूर्ण करके अपने वन अधिकार के दावें वन अधिकार समिति को देगी।



 

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