- ध्रुव चरित्र का बखान कथा वाचक ने कहा भक्ति की कोई आयु नहीं होती
- जीवन में भगवान की भक्ति और सेवा सर्वोपरि
- ग्राम पिपरिया में बह रही ज्ञान की गंगा, श्रीमद् भागवत सुनने उमड़ रही भक्तों की भीड़
मंडला महावीर न्यूज 29. निवास के समीप ग्राम पिपरिया पर श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन कथा व्यास पं अनुज कृष्णम महाराज ने ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि ध्रुव एक आदर्श और प्रतिष्ठित चरित्र है, जिसने अपने जीवन में भगवान की भक्ति और सेवा को सर्वोपरि माना। उन्होंने कहा कि ध्रुव ने अपने पिता के अपमान को सहन किया और भगवान की शरण में गए। भगवान ने ध्रुव की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपना दर्शन दिया और उन्हें एक महान राजा बनाया। छोटी सी उम्र में ध्रुव जी ने भगवान के दर्शन प्राप्त किए थे इसलिए भक्ति की कोई उम्र नहीं होती हैं हमें बचपन से ही भगवान की भक्ति करनी चाहिए।
कथा व्यास पं अनुज कृष्णम जी महाराज ने कहा कि ध्रुव की कहानी हमें सिखाती है कि भगवान की भक्ति और सेवा से हमें कभी भी निराशा नहीं होनी चाहिए। हमें अपने जीवन में भगवान की शरण में जाना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि ध्रुव की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए और भगवान की कृपा पर विश्वास रखना चाहिए।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
निवास के समीपी ग्राम पिपरिया में चौकसे परिवार के तत्तवावधान में आयोजित श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ में न केवल धार्मिक ज्ञान का वर्णन किया जा रहा है। बल्कि कथा व्यास द्वारा पर्यावरण के महत्व और संरक्षण के बारे में भी जागरूकता फैलाई जा रही है जिसमें बताया गया कि पेड़, पौधों का हमारे धर्म में विशेष महत्व है। हर एक सनातनियों को अपने-अपने घरों में तुलसी की पौधा अनिवार्य रूप से लगाना चाहिए जिससे न केवल हमें पुण्यफल की प्राप्ति हो अपितु स्वच्छ प्राण वायु भी मिलती रहे। नकारात्मक प्रभावों से भी मुक्ति मिले। तुलसी के साथ साथ पीपल, बिल्ब, वट, केला, शमी आदि वृक्षों के पूजन और संरक्षण की प्रेरणा हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है। यह एक अद्वितीय प्रयास है। जो धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी उजागर कर रहा है वही उन्होंने कहा कि पहले लोग जंगल में जाकर एकाग्रता से बड़े-बड़े तप साधना करते थे परंतु आज जंगल ही नहीं बच पा रहा हैं। कुछ लोगों द्वारा जंगल को नष्ट किया जा रहा हैं। कथा को सुनने के लिए पिपरिया और आसपास के ग्रामों से बड़ी संख्या में श्रृद्धालुओं की भीड़ जुट रही है।