शारदे भवानी के 17 वर्षो से बंद है पट

  • शारदे भवानी के 17 वर्षो से बंद है पट
  • करीब 1500 ईसवीं में स्थापित हुई थी माता की मढिय़ा
  • माता रानी जिसके स्वप्र में आकर देती इजाजत, वहीं बनता है यहां पंडा
  • सच्चे मन से मांगी मुराद होती है पूरी
  • माता रानी के बंद है पट, करीब 1500 ईसवीं में हुई थी स्थापित

मंडला महावीर न्यूज 29. आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में अनेकों धार्मिक स्थल और पर्यटन स्थल विख्यात है। जिनकी ख्याती दूर-दूर तक फैली हुई है। जिले में धार्मिक मान्यताओं से जुड़े बहुत से देवी माता के मंदिर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। जहां माता के भक्त दूर दूर से उनके दर्शन और अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते है। एक ऐसा ही धार्मिक स्थल मंडला जिले के विकासखंड बीजाडांडी मुख्यालय से करीब चार किमी दूर स्थित है। जहां माता शारदे भावनी के पट करीब 17 वर्षो से बंद है। बावजूद इसके माता के भक्त श्रृद्धा और भक्ति के कारण माता के दरबार में दौड़े दौड़े चले आते है। यहां की मान्यता है कि माता रानी के दरबार से कोई भी भक्त खाली हाथ लौटकर नहीं जाता है। माता के पट बंद होने के बाद भी भक्त बाहर से ही सच्चे मन से जो भी मुराद मांगते है, माता उनकी मुराद पूरी कर देती है।

जानकारी अनुसार जिले के विकासखंड बीजाडांडी मुख्यालय से करीब 04 किमी दूर बारंगदा ग्राम की मढिय़ा में बिराजी शारदे भवानी संपूर्ण क्षेत्र में प्रसिद्ध है। यहां श्रृद्धा भाव से जो मन्नत की गई वह पूरी हुई है, लेकिन पिछले पण्डा के देहांत के बाद करीब 17 वर्षो से मातारानी का दरबार बंद हो गया है व इतने वर्षो से यहां पूजा-अर्चना नही हो रही है। यहां देखरेख का कार्य कर रहे इमृत मरावी ने बताया कि पूर्वजों अनुसार इस मढिय़ा की स्थापना लगभग 1500 ईसवी में की गई थी।

इमृत मरावी ने बताया कि वर्षो से ही एक परिवार के 06 पण्डा बल्ली, दुर्ग, मारी, बृजलाल, ईमरत व जियालाल द्वारा यहां पूजा-अर्चना कराई गई। कुछ वर्ष पूर्व पण्डा बृजलाल के देहांत के बाद लगभग 15 वर्ष के लिए मातारानी के पट बंद रहे। इसके बाद हमारे पूर्वज ईमरत को स्वप्न आया कि वह यहां पण्डा बनकर मातारानी की सेवा करे। इसके बाद फिर ईमरत पण्डा बने। उनके बाद जियालाल पंडा बने। जियालाल के देहांत के बाद अभी तक यहां कोई पण्डा नहीं है।

ग्रामीण बताते है कि मातारानी जिसके स्वप्न में आती है और जिसे यहां पण्डा बनने की इजाजत देती है वही पण्डा बनकर सेवा करता है। मातारानी के दरबार में सूनी गोद भरती है, नौकरी प्राप्त होती है, विवाह कार्य पूर्ण होते है और सच्चे दिल से मांगी हर मुराद पूरी होती है। ग्रामीणों ने बताया कि जब मातारानी का पट खुलता था तो दिल्ली, मुम्बई, राजस्थान समेत अन्य क्षेत्रों और दूर-दूर से श्रृद्धालू यहां आकर मन्नते करते थे और मुरादें पूरी होती थी, लेकिन मातारानी का दरबार बंद होने के बाद यहां श्रृद्धालु कम आते है।

इनका कहना है

बारंगदा की माता रानी के दरबार से कभी कोई खाली हाथ नहीं जाता। यहां जिनकी संतान नहीं होती, जिनके व्यापार में नुकसान होता हो उनकी मुराद माता रानी पूरी करती है, इसके साथ ही यहां आने वाले भक्त सच्चे मन से जो भी मन्नत करते है, माता रानी पूरी करती है। माता का पट बंद होने के बाद भी अष्टमी और नवमी को बहुत दूर दूर से भक्त माता रानी से प्रार्थना करने जरूर यहां पहुंचते है।


इमृत मरावी, सेवादार


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