- भगवान की भक्ति से ही जीव कर सकता है भव सागर पार
- नौ दिवसीय श्री राम कथा के तृतीय दिवस कथा व्यास महामंडलेश्वर स्वामी ने नारद मोह का सुनाया प्रसंग
मंडला महावीर न्यूज 29. निवास नगर के शतचंडी मैदान में नौ दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथा व्यास महामंडलेश्वर स्वामी आत्मानंद गिरि जी महाराज ने नारद मोह का प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति जीव को भवसागर से पार भी करती है। अगर भक्ति का अहंकार हो जाए तो अहंकार युक्त भक्ति जीव का पतन भी कर देती है।
गुरुदेव ने कहा कि देव ऋषि नारद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। भगवान की भक्ति करने के लिए हिमालय की कंदरा में जाकर एक झरने के किनारे बैठ गए। बड़ी सुंदर गुफा थी गुफा में बैठते ही देव ऋषि नारद की समाधि लग गई और भगवान के स्वरूप का आनंद प्राप्त करने लगे देव ऋषि नारद की समाधि को देखकर देवराज इंद्र भयभीत हो गए। देवराज इंद्र को लगा कहीं देव ऋषि नारद की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी कहीं मेरा इंद्रासन देव ऋषि नारद को ना दे दे, इसलिए इंद्र ने देव ऋषि नारद की समाधि को तोडऩे का प्रयत्न किया।
आगे प्रसंग में बताया गया कि नारद को भक्ति का अहंकार हो जाता है। इस पर भगवान ने माया रची एक सुंदर नगरी बनाई। उसमें एक विश्व मोहिनी नाम की कन्या के विवाह तैयारियों की। देव ऋषि नारद जब उस नगर के सामने से निकले तो मोहित हो गए। माया में फंस गए। नारद के मन में आया कि जो इस कन्या से शादी करेगा। वह तो पूरे ब्रह्मांड का नायक होगा। देव ऋषि नारद भगवान विष्णु के पास गए उनसे अपना स्वरूप मांगा। भगवान विष्णु ने उन्हें बंदर का रूप दे दिया। क्योंकि देव ऋषि नारद का कल्याण चाहते थे। भगवान विष्णु कन्या स्वयंवर में उस कन्या ने किसी अन्य राजा के गले में माला डाल दी तो भगवान के पार्षद जय और विजय इस पर हंसने लगे।
देव ऋषि नारद ने जय और विजय को श्राप दे दिया और भगवान विष्णु को भी श्राप दे दिया कि तुमने जो आज मेरा बंदर का मुख बनाया है यही आगे चलकर तुम्हारी रक्षा करेगा। भगवान विष्णु ने अपना असली रूप दिखाया तो देव ऋषि नारद का मुंह दूर हुआ। देव ऋषि नारद को दुख भी हुआ कि मैंने भगवान को श्राप दे दिया। लेकिन भगवान ने देव ऋषि नारद को समझाया कि यह सब मेरी इच्छा सेवा है। अहंकार जीव का सबसे बड़ा दुश्मन है। किसी बात का भी अहंकार नहीं करना चाहिए। श्रीराम कथा का श्रवण करने बड़ी संख्या में श्रृद्धालु पहुंच रहे है।