क्या आपको मालूम है कि आजादी और इसके बाद सांसदों और मंत्रियों का वेतन कितना था. यहां ये बताना जरूरी है कि जब देश आजाद हुआ तब केंद्र सरकार के कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 55 रुपए था जबकि सबसे सीनियर अधिकारियों की सैलरी हर महीने 2000 रुपए के आसपास थी. जब सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट आई तो सीनियर मोस्ट केंद्रीय अधिकारियों की सैलरी बढ़कर 90000 हो गई तो न्यूनतम सैलरी 7000 रुपए.
सांसदों की सैलरी का प्रावधान द सैलरी, अलाउंस एंड पेंशन ऑफ मेंबर्स ऑफ पार्लियामेंट एक्ट, 1954 के तहत किया गया था. इसी के जरिए उन्हें सैलरी मिलती है लेकिन समय समय पर इसमें बढोतरी का प्रस्ताव संसद में पास होकर अमल में लाया जाता रहा है.
फिलहाल मेंबर ऑफ पार्लियामेंट यानि सांसद को 1,00,000 रुपये की बेसिक सैलरी और 45,000 रुपये का चुनाव क्षेत्र भत्ता मिलता है. 2018 की शुरुआत तक सांसदों की बेसिक सैलरी 50,000 रुपये हुआ करती थी. इसके अलावा भी सांसदों को कई सारी सुविधाएं भी मिलती हैं.
1947 को देश को आजादी मिली. वह गरीबी का समय था. देश गरीबी के साथ तमाम चुनौतियों से जूझ रहा था. एक आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार आजादी के बाद अगले करीब डेढ़ दशकों तक सांसदों का वेतन 400 रुपये था.
साल 1964 में सांसदों के वेतन में इजाफा तो जरूर हुआ लेकिन ये सौ रुपये का था. तब वेतन बढ़कर 500 रुपये हो गया. 2006 में सांसदों को 16 हजार रुपये वेतन के रूप में मिलने लगे. 2009 में वेतन सबसे ज्यादा बढ़ा और ये सीधे 50 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया. इसके बाद साल 2018 में इसे बढ़ाकर एक लाख रुपये हर महीने किया गया.
250 गुना बढोतरी
इस तरह अगर देखें तो आजादी के बाद 77 सालों माननीयों के वेतन में 250 गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई. ये बढोतरी शायद भारत के किसी भी सेक्टर के वेतन में सबसे ज्यादा कहा जाना चाहिए. खासकर ये देखते हुए कि सांसदों और मंत्रियों को कई ऐसी सुविधाएं दी जाती हैं, जिनकी कीमत बहुत ज्यादा है,. इसमें मुफ्त मकान से लेकर बिजली, फोन, यात्रा और चिकित्सा समेत कई तरह की सुविधाएं शामिल हैं. देश में फिलहाल करीब 800 सांसद हैं, जो लोकसभा और राज्यसभा दोनों में शामिल हैं.
सांसदों की बढ़ी सेलरी का वर्षवार
1947 400 रु.
1964 500 रु.
1983 750 रु.
1985 1000 रु.
1988 1500 रु.
1998 4000 रु.
2001 12000 रु.
2006 16000 रु.
2009 50000 रु.
2018 100000 रु.
सांसदों को मिलने वाले भत्ते
दैनिक भत्ता प्रतिदिन 2,000 रुपये (संसद सत्र के दौरान)
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 70,000 रुपए (हर महीने)
कार्यालय व्यय भत्ता 60,000 (हर महीने)
यात्रा भत्ता मुफ्त फर्स्ट क्लास एसी या किसी भी एग्जक्यूटिव क्लास का ट्रेन पास (साथ में एक अटेंडेंट का भी किराया)
हवाई यात्रा का 25 फीसद ही देना पड़ता है
साथ में मुफ्त बिजली, पानी और फोन सुविधा.
पेंशन – 25 हजार रुपए प्रतिमाह (सेवा के प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष के लिए 1,500 की वृद्धि)
संविधान देता है वेतन और भत्ते का अधिकार
संविधान एक कानून पारित करके सांसदों को अपने वेतन और भत्ते निर्धारित करने का अधिकार देता है. हालांकि इससे हितों का टकराव होता है.
इस मुद्दे को हल करने के लिए, कुछ देशों ने एक स्वतंत्र प्राधिकरण, वरिष्ठ सिविल सेवकों के वेतन के लिए बेंचमार्किंग और विधायिका द्वारा पारित अधिनियम के कार्यान्वयन में देरी जैसी प्रक्रियाओं का उपयोग किया है. हमारे देश में अक्सर सांसद के वेतन और भत्तों की वृद्धि के मामलों को देखने के लिए एक संसदीय कमेटी का गठन किया जाता है. फिर उसकी संस्तुतियों के आधार पर फैसला लेकर संबंधित प्रस्ताव पास करके वेतन वृद्धि कर दी जाती है.
भारत में घर दिया जाता है दूसरे देशों में ऐसा नहीं
भारतीय सांसदों का भत्ता ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में राष्ट्रीय विधायकों के भत्ते से भिन्न है. भारतीय सांसदों को आवास मुहैया कराया जाता है, जबकि ब्रिटिश सांसदों को घर किराए पर लेने के लिए भत्ता दिया जाता है और अमेरिका में ऐसा कोई भत्ता नहीं है. ये देश कार्यालय की जगह मुहैया कराते हैं जो भारतीय सांसदों को नहीं मिलती.
वेतन वृद्धि का अधिकार
संविधान का अनुच्छेद 106 सांसदों को कानून बनाकर अपने वेतन और भत्ते निर्धारित करने का अधिकार देता है. 2018 तक संसद समय-समय पर सांसदों के वेतन को संशोधित करने के लिए कानून पारित करती रही. 2018 में वित्त अधिनियम के माध्यम से संसद ने सांसदों के लिए वेतन निर्धारित करने वाले कानून में संशोधन किया.
इसने उनके वेतन को संशोधित किया और प्रावधान किया कि आयकर अधिनियम, 1961 के तहत प्रदान किए गए लागत मुद्रास्फीति सूचकांक के आधार पर, सांसदों के वेतन, दैनिक भत्ते और पेंशन में हर पांच साल में वृद्धि की जाएगी. इसके अलावा, 1985 में, संसद ने अधिनियमित किया एक कानून जिसने सांसदों के कुछ भत्ते जैसे निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, कार्यालय भत्ता और आवास भत्ता निर्धारित करने और संशोधित करने की शक्ति केंद्र सरकार को सौंप दी.
दूसरे देशों में कौन बढ़ाता है सांसदों का वेतन
यूनाइटेड किंगडम – एक पूर्व सांसद, पूर्व न्यायाधीश और लेखा परीक्षक की कमेटी हर साल सार्वजनिक क्षेत्र की औसत कमाई के अनुसार वेतन को सालाना तौर पर संशोधित करती है.
ऑस्ट्रेलिया – सरकार, अर्थशास्त्र, कानून और सार्वजनिक प्रशासन के विशेषज्ञों से बनी एक समिति हर साल वेतन को संशोधित करती है.
न्यूज़ीलैंड – न्यायाधीशों, सांसदों और स्वतंत्र वैधानिक निकायों के सदस्यों से बनी समिति ये तय करती है.
फ्रांस – वेतन निर्धारित करने के लिए उच्चतम ग्रेड पर सबसे अधिक और सबसे कम वेतन पाने वाले सिविल सेवकों के औसत वेतन उपयोग किया जाता है.
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Tags: Member of parliament, Salary hike
FIRST PUBLISHED : March 20, 2024, 11:30 IST