रिश्तों में मिठास घोलती है शक्कर की माला
- होली पर्व में वर्षो चल रही माला भेंट करने की परंपरा
- शक्कर की माला का कम हो गया व्यापार
- विलुप्त होने लगी स्थानीय परंपरा
मंडला महावीर न्यूज 29. होली पर्व रिश्तों में मिठास घोलने के लिए आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में वर्षो से शक्कर की माला एक दूसरे को भेंट करने की पंरपरा चली जा रही है। वैसे तो होली का पर्व रंग, गुलाल लगाकर शुभकानाएं देने के साथ रिश्तों में खुशियों के रंग और मिठास भरने का है, लेकिन आज भी इस आधुनिक युग में आदिवासी बाहुल्य जिला के लोग होली में शक्कर की माला भेंट करने की परंपरा को संजो कर रखे है।
जानकारी अनुसार होली रंगों का त्योहार है, जिसमें लोग आपस में मिलकर रंगों में सराबोर होकर होली खेलते हैं। होली पर्व में लोग आपसी रंजिशें, आपसी बुराइयों को भुलाकर एक नए रिश्ते बनाते हैं। होली न केवल रिश्तों को ही मजबूती प्रदान करता है, बल्कि लोगों के दिलों को भी जोड़ता है। होली का पर्व रंग-गुलाल लगाकर शुभकानाएं देने के साथ रिश्तों में खुशियों के रंग और मिठास घोलने का है। रिश्तों की मिठास को और मीठा करने के लिए अब बाजारों में शक्कर की माला दिखने लगी है। इस माला को बनाने वाले दिन रात शक्कर से माला बनाने का कार्य कर रहे है। शक्कर की माला भेंट करने की पंरपरा वर्षो पुरानी है, जिसे लोग आज भी संजोकर रखे हुए है। हालांकि पूर्व की तुलना में इसका उपयोग अब कम हो गया है।
स्थानीय बुजूर्गो का कहना है कि रिश्तों में मिठास बनाए रखने और राग-द्वेष, बैर की होली जलाकर उन्हें प्रेम की मीठी माला में पिरोकर गले लगाना ही होली का मुख्य उद्देश्य है। इसका जीवंत प्रतीक है शक्कर की माला। यह केवल होली पर्व पर ही दिखाई देती है। इसे होली पर्व में एक दूसरे को भेंट करने का मतलब होता है कि हम जिस रिश्ते को निभा रहे हैं, वह रिश्ता भी इस माला की तरह मीठा बना रहे। शक्कर की माला का उपयोग पहले पर्व की एक मिठाई के रूप में भी किया जाता था। अब यह परंपरा भी धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
कम हो गया माला का व्यापार
ग्राम रामबाग में शक्कर बनाने वालों ने बताया कि पिछले एक दशक में शक्कर की माला का व्यापार आधे से भी कम हो गया है। पहले करीब 5 से 8 क्विंटल माला बिक जाती थी। अब बमुश्किल से करीब 2 से 3 क्ंिवटल तक सिमट कर रह गई है। जिले के कुछ परिवार इस परम्परा आगे बढ़ाने के लिए अपनी युवा पीढ़ी को इसकी जानकारी दे रहे हैं। इस बार शक्कर की माला फिलहाल थोक में 80 रूपए किलो तक अभी बिक रही है। वहीं फुटकर में 100 रूपए किलो है। आगामी एक दो दिनों बाद यही माला की कीमत होली के एक दिन पहले बढ़ जाएगी।
ऐसे बनती है शक्कर की मीठी माला
रामबाग के माला बनाने वाले ने बताया कि शक्कर की माला बनाने के लिए शक्कर की चाशनी तैयार कर उसके झाग को अलग कर लकड़ी के सांचे में डालते हैं। इस सांचे में छोटे-छोटे खंड बने होते हैं। सांचे में ही एक लंबा धागा डाला जाता है, जिससे चाशनी में डूब जाए। एक से दो घंटे के बाद जब चाशनी सूख जाती है तो उसे सांचे से निकाला जाता है। और शक्कर की माला तैयार हो जाती है। इसमें चीनी के अलावा सफेदी लाने के लिए हाइट्रोजन पाडर मिलाया जाता है, जिससे सफेदी आती है।
विलुप्त होती और भी परंपराएं
स्थानीय बुजूर्ग बताते है कि होलिका दहन में गेहूं की नई फसल की बालियां, हरे चने के पौधे एक साथ बांधकर होरा को होली की आग में भूनकर उन्हें परिजनों के साथ मिलकर खाने की परम्परा भी अब औपचारिकता बनकर रह गई है। होरा भूनकर फाग में आने वाले नए गेहूं, चना की फसलों को अग्निेदव को समर्पित कर उनसे अच्छी पैदावार की कामना की जाती थी। इस परम्परा को किसानों के अलावा आमजन भी खूब निभाते थे। इसके साथ ही बाजारों में भी इस होरा को बेचा जाता था, लेकिन आज यह परंपरा भी गायब होने लगी है।
प्यार की मिठास का प्रतीक
शक्कर की माला होली में मिठास और भाईचारे का प्रतीक है। यह रिश्तों में प्रेम की मिठास घोलती है। इसे लोग भगवान को अर्पित करने के लिए मिठाई की जगह शक्कर की माला का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही होली पर्व की दूज में भी बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर शक्कर की माला पहनाती हैं, जिससे भाई बहन के प्यार में मिठास बनी रहे।
संतोष कछवाहा
पहले होली में घर-घर शक्कर माला पहनाकर रंग-गुलाल लगाने की परंपरा थी। धीरे-धीरे परंपरा समाप्त होती जा रही है और उसी के आधार पर व्यापार भी कम होता जा रहा है। वर्तमान में होली में शक्कर की माला का 20 प्रतिशत ही व्यापार बचा है।
पहले पर्व के दौरान जिले में दर्जनों व्यापारी महाशिवरात्रि के बाद से ही माला बनाने के काम में जुट जाते थे। बाजार में शक्कर के माला की भरमार होती थी, होली के पहले ही बाजार शक्कर की माला से गुलजार हो जाता था। अब यह भी विलुप्त होती जा रही है।