अनोखी परंपरा-फूलों के रंग से खेलते है होली
- पलाश के रंग से होली खेलने की अनोखी परंपरा
- पलेहरा ग्राम के ग्रामीण बनाते है पलाश के फूल से रंग
- एक सप्ताह पहले करते है फूलों से रंग बनाने की तैयारी
- पलाश के फूलों से बने रंग से होली खेलने की परंपरा को संजोकर रखे आदिवासी समाज
मंडला महावीर न्यूज 29. मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूर स्थित एक ऐसा गांव है जहां आदिवासी समाज अपनी परंपरा को बरकरार रखने के लिए होली पर्व में फूलों से रंग बनाकर होली खेलते है। यह परम्परा इस ग्राम में वर्षो से चली आ रही है। इस गांव का नाम पलेहरा है, जहां के आदिवासी पलाश के फूलों से रंग बनाकर होली खेलते हैं। यहां गांव के सभी महिला पुरूष एकत्र होकर जंगल की ओर निकलते हैं और फूल को तोडऩे से पहले विधि विधान से पूजन अर्चन करते हुए दादरे गाते हैं, जिसके बाद पलाश के फूलों को तोड़ा जाता है। इस पलाश के फूल को छुइला के नाम से भी जाना जाता है। होली में इस फूल का उपयोग आज भी कई ग्रामीण रंग के रूप में करते हैं।
जानकारी अनुसार पलाश के फूल से बने रंग एकाएक जल्दी से नहीं छूटते, इसका रंग काफी गहरा होता है। वहीं यह पूरी तरह से प्राकृतिक रंग है, जो बाजार में मिलने वाले केमिकल रंगों से कही बेहतर है। इसका रंग शरीर को एलर्जी व गर्मी से राहत देता है। लेकिन लोग बाजार में बिकने वाले केमिकल रंगों पर ज्यादा विश्वास करते हैं। गांवों में आज भी पलाश के फूलों से बने रंग से होली खेलने की परंपरा को संजोकर रखे हुए है।
यहां के ग्रामीणों का मानना है कि फूलों से बने कलर शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। पलाश के चटक फूलों से बने सुर्ख रंग शरीर का पूरा ख्याल रखते हैं। पलाश के फूल से तैयार प्राकृतिक रंग से होली खेलने की परंपरा से प्रभावित हुए लोगों को रासायनिक रंग व त्वचा संबंधी बीमारी से निजात दिलाने के लिए प्राकृतिक रंग बेहतर लगने लगा है। पलाश के फूल से तैयार प्राकृतिक रंग से होली खेलने की मुहिम पांच वर्ष पहले कस्बे में शुरू की गई। इस बार यहां के लोगों ने प्राकृतिक रंग से होली खेलने का फैंसला किया है।
एक सप्ताह पहले से करते है तैयारी
पलहेरा के ग्रामीणों ने बताया कि यहां के लोग होली के एक सप्ताह पहले से पलाश के फूल एकत्र करना शुरू कर देते हैं। घर की महिलाएं व बच्चे जंगल से पलाश का फूल तोडऩे के लिए जाते हैं। फूल लेकर लौटते हैं। होली के एक दिन पहले फूलों को गर्म पानी में उबालते हैं, पानी जितना गर्म करते हैं रंग उतना ही लाल होता है। लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार रंग बनाते हैं। यहां वंशिदों ने बताया कि ठंडे पानी में पलाश का फूल डालकर स्नान करने से गर्मी में लू नहीं लगती है।
रंग बनाने के साथ आयुर्वेद में होता है उपयोग
बताया गया कि पलाश के फूल को पीस कर चेहरे पर लगाने से निखार बढ़ता है। होली रंगों और खुशियों का त्योहार है, त्योहार में मस्ती का तड़का तब और बढ़ जाता है जब इसमें हर्बल रंगों का मेल हो जाता है। जिले में भी पलाश के पेड़ों की भरमार है। पलाश के फूलों से न सिर्फ प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं बल्कि आयुर्वेद के रुप में इसका बेहतरीन इस्तेमाल भी किया जाता है।