शिवजी को अर्पित किया जा सकता है तुलसी दल-आचार्य दिवाकर चौबे

शिवजी को अर्पित किया जा सकता है तुलसी दल-आचार्य दिवाकर चौबे

  • नीमवाली माता में चल रही श्री शिवमहापुराण कथा

मंडला महावीर न्यूज 29. उपनगर महाराजपुर के हनुमानजी वार्ड नीमवाली माता मंदिर प्रांगण में श्री शिव महापुराण का आयोजन किया जा रहा है। आयोजन के सातवे दिन कथा का वाचन करते हुए आचार्य पंडित दिवाकर चौब ने बताया कि आज के समय में भक्त इस बात को लेकर भ्रमित हैं कि शंकर जी को तुलसी वर्जित है। परंतु यह केवल मिथ्या है। वास्तविकता तो यह है कि शिव पुराण में वर्णित रूद्रसंहिता के सृष्टिखंड के 14वें अध्याय के 28 श्लोक में लिखा हुआ है भुक्तिमुक्ति फलं तस्य तुलस्या पूज्येद्यदि अर्थात तुलसीदल शिव जी पर अर्पित करने से भोग व मोक्ष दोनों ही प्राप्त हो जाते हैं। इसीलिए शिवजी में तुलसीदल बिना किसी दोष के अर्पित कर सकते हैं। इसलिए भगवान नारायण की तरह शिव जी को तुलसी दल अवश्य अर्पित करना चाहिए।

भगवान का भजन करें

महाराजश्री दिवाकर चौबे ने कथा में बताया कि आप पूजा कर रहे हैं,कथा सुन रहे हैं यह धर्म नहीं है,यह आपका कर्तव्य है। ये आपका नियम है,आपको करना चाहिए। जिस तरह आप भोजन करते हैं,नहीं करेंगे तो क्या होगा। पहले बिस्तर पर पड़ेंगे उसके बाद आप चिता तक पहुंच जाएंगे। भजन ही साथ जाता है। आपने जितना सत्कर्म किया है,भजन किया है केवल वही हमारे पास बचता है। इसीलिए भगवान का भजन करो।

तुलसी ने दिया था भगवान को श्राप 

शंखचूर्ण की मृत्यू के बाद तुलसी ने भगवान नारायण को श्राप दिया था कि भगवान आपके ह्दय में तनिक मात्र भी विनम्रता नहीं है। तुलसी ने भगवान नारायण को श्राप दिया था कि जैसे आपका ह्दय पाषाण की भांति हो गया,वैसे आप स्वयं पत्थर हो जाओ। खुद जलती हुई तुलसी शांत हो गई। सती धर्म को अपनाते हुए तुलसी जलकर राख हो गई। शंकर जी प्रगट हुए। शंकर जी ने भगवान तुलसी और नारायण को वरदान दिया। पूर्व जन्म में तुलसी वृदावन में रहा करती थी। राधा जी से झूठ बोलने के कारण तुलसी को शंखचूर्ण की पत्नी बनना पड़ा। कृष्ण जी ने पहले ही तुलसी को वरदान दिया था कि राधा के श्राप के कारण तुम्हें शंखचूर्ण की पत्नी बनना पड़ेगा। परंतु बाद में तुम मुझे शालिगराम रूप में प्राप्त करोगी।



 

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