सामूहिक बलात्कार की सजा में मृत्युदंड का प्रावधान

Advertisements

दंडात्मक से न्याय-उन्मुख दृष्टिकोण में बदलाव के संकेत हैं नए कानून न्याय प्रणाली में परिवर्तनकारी कदम

  • धारा 70(2) सामूहिक बलात्कार की सजा में मृत्युदंड का प्रावधान
  • आईपीसी में धाराओं की संख्या घटी, 20 नए अपराध जोड़े गए
  • कई अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई

मंडला महावीर न्यूज 29. भारतीय संसद ने तीन ऐतिहासिक कानूनों भारतीय दंड संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को क्रमश: भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 से प्रतिस्थापित करके आपराधिक न्याय प्रणाली में एक परिवर्तनकारी कदम उठाया है।

भारतीय मूल्यों पर आधारित ये नए कानून दंडात्मक से न्याय-उन्मुख दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देते हैं, जो भारतीय न्याय व्यवस्था को प्रतिबिंबित करता है। औपनिवेशिक युग के कानून ब्रिटिश हितों की रक्षा के लिए बनाये गये थे। इनमें भारतीयों से परामर्श नहीं किया गया था तथा इनमें ब्रिटिश केंद्रित शब्दावली और रूपरेखाएं अंतर्निहित थीं। ये विधायी परिवर्तन आजादी का अमृत महोत्सव की परिणति को चिह्नित करते हैं और अमृत काल की शुरूआत करते हैं जो वास्तव में स्वतंत्र भारत के निर्माण का प्रतीक है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के दिशा-निर्देश में संशोधन प्रक्रिया वर्ष 2019 में प्रारंभ हुई, जिसमें विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श शामिल था और न्यायपालिका के सदस्य, कानून विश्वविद्यालय, राज्य के अधिकारी और आम नागरिक शामिल थे। यह सहयोगात्मक प्रयास सुनिश्चित करता है कि नए कानून ऐसी न्याय प्रणाली हैं जो पूरी तरह से स्वदेशी होगी, यह भारत द्वारा, भारत के लिए और भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार संचालित होगी। इसका मुख्य लक्ष्य ऐसी आपराधिक न्याय प्रणाली बनाना है जो न केवल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है, बल्कि कानूनी व्यवस्था को भी और अधिक मजबूत बनाती है जिससे सभी के लिए सुलभ एवं त्वरित न्याय सुनिश्चित हो। यह सुधार भारत में एक निष्पक्ष, आधुनिक और न्यायपूर्ण कानूनी ढांचे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

भारतीय चिंतन पर आधारित न्याय प्रणाली 

इन कानूनों का उद्देश्य भारतीय कानूनी प्रणाली में सुधार करना और भारतीय सोच पर आधारित न्याय प्रणाली स्थापित करना है। नए आपराधिक कानून लोगों को औपनिवेशिक मानसिकता और उसके प्रतीकों से मुक्त करेंगे और हमारे मन को भी उपनिवेशवाद से मुक्त करेंगे। यह दंड के बजाय न्याय पर ध्यान केन्द्रित है। सबके साथ समान व्यवहार मुख्य विषय है। यह कानून भारतीय न्याय संहिता की वास्तविक भावना को प्रकट करते हैं। इन्हें भारतीय संविधान की मूल भावना के साथ बनाया गया है। यह कानून व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। यह मानव अधिकारों के मूल्यों के अनुरुप है। यह पीडि़त-केन्द्रित न्याय सुनिश्चित करेंगे। इन कानूनों की आत्मा न्याय, समानता और निष्पक्षता है।

नागरिक केन्द्रित कानून 

भारतीय लोकाचार को अपने मूल में रखने वाले नए आपराधिक कानून अधिक नागरिक केन्द्रित बनने की दिशा में बदलाव के प्रतीक हैं। बीएनएसएस की धारा 173 (1) में नागरिकों को मौखिक अथवा इलेक्ट्रॉनिक संचार (ई-एफआईआर), बिना उस क्षेत्र पर विचार किए जहां अपराध किया गया है, एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है। बीएनएसएस की धारा 173 (2) (1) के तहत नागरिक बिना किसी देरी के पुलिस द्वारा अपनी एफआईआर की एक नि:शुल्क प्रति प्राप्त करने के हकदार हैं। बीएनएसएस की धारा 193 (3) के तहत पुलिस को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में पीडि़त को सूचित करना अनिवार्य है। बीएनएसएस की धारा 184 (1) के अनुसार पीडि़ता की मेडिकल जांच उसकी सहमति से और अपराध की सूचना मिलने के 24 घंटे के भीतर की जाएगी। बीएनएसएस की धारा 184 (6) के तहत मेडिकल रिपोर्ट चिकित्सक द्वारा 7 दिनों के भीतर भेजी जाएगी।

नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा उपचार और मुआवजे का अधिकार 

बीएनएसएस धारा 18 (8) के तहत नागरिकों को अभियोजन पक्ष की सहायता के लिए अपना स्वयं का कानूनी प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और सुलभ बनाया गया है। धारा 230 बीएनएसएस में नागरिकों को दस्तावेज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। बीएनएसएस की धारा 396, इसमें पीडि़त नागरिकों को मुफ्त चिकित्सा उपचार और मुआवजे का अधिकार है। बीएनएसएस की धारा 398 के अंतर्गत गवाह संरक्षण योजना का प्रावधान किया गया है। धारा 360 बीएनएसएस में अभियोजन से हटने के लिए सहमति देने से पहले न्यायालयों को पीडि़त की बात सुनने का अधिकार दिया गया है। यह आपराधिक न्याय के लिए न्याय केन्द्रित दृष्टिकोण का सबसे अच्छा उदाहरण है। बीएनएसएस की धारा 404 के तहत पीडि़तों को न्यायालय में आवेदन करने पर निर्णय की नि:शुल्क प्रति प्राप्त करने का अधिकार मिला है। धारा 530 बीएनएसएस कानूनी जांच, पूछताछ और मुकदमे की कार्यवाही को इलेक्ट्रॉनिक रूप से आयोजित करने का प्रावधान है।

नए आपराधिक कानून पर एक नजर 

आईपीसी में धाराओं की संख्या 511 से घटाकर बीएनएस में 358 कर दी गई। 20 नये अपराध जोड़े गए। कई अपराधों के लिए अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है। 6 छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है। कई अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है। कई अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई है।

कुछ विशेषताएं 

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को एक अध्याय में समेकित किया गया है। धारा 69 झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। धारा 70(2) सामूहिक बलात्कार की सजा में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस)

मुख्य परिवर्तन 

सीआरपीसी में धाराओं की संख्या 484 से बढ़ाकर बीएनएसएस में 531 की गई। 177 धाराओं को प्रतिस्थापित किया गया। 9 नई धाराएं जोड़ी गई। 14 धाराएं निरस्त की गई।

कुछ विशेषताएं 

जांच में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा। मजिस्ट्रेट द्वारा जुर्मानों में वृद्धि की गई है। एफआईआर प्रक्रियाओं और पीडि़तों की सुरक्षा को सुव्यवस्थित करना। धारा 173 जीरो एफआईआर और ई एफआईआर का प्रावधान किया गया है। धारा 176 (1) (ख) यह कानून ऑडियो-वीडियो के माध्यम से पीडि़त को बयान रिकॉर्डिंग का अधिकार देता है।


आमजन तक पहुँचाएं नए स्वरूप में लागू किए गए कानून की जानकारियाँ – डॉ. यादव

  • वीडियो कॉफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने दिए निर्देश

मंडला 30 जून नभाप्र. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की पहल से देश में गुलामी की निशानियों को समाप्त करने के लिए विभिन्न कार्य हो रहे हैं। इस क्रम में एक जुलाई से देश में अनेक कानून नये स्वरूप में लागू होंगे। दंड के स्थान पर न्याय का महत्व बढ़े एवं भारतीय नागरिकों को संविधान में प्रदत्त अधिकारों की रक्षा हो सके, इस चिंतन से तीन विधेयक निरस्त कर नए दंडनीय विधेयक लाए गए हैं। आमजन तक इनकी जानकारी पहुँचाने के सभी प्रयास किए जाएं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि अंग्रेजों के समय से चले आ रहे ऐसे विधेयक एवं अधिनियम में भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (1898), 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 शामिल हैं। भारतीय दंड संहिता 1860 को भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। दंड प्रक्रिया संहिता 1898 को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। इसी तरह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।


उन्होंने कहा कि आमजन को विभिन्न सेमीनार और वेबीनार के माध्यम से भी इन कानूनों की जानकारी प्रदान की जाए। अभियान संचालित कर नये कानूनों की जानकारियों को प्रचारित किया जाए। वीडियो कॉफ्रेंस में पुलिस महानिदेशक सुधीर कुमार सक्सेना ने बताया कि प्रदेश के सभी 982 थानों में नए कानूनों की जानकारी देने के लिए विशेष कार्यक्रम भी एक जुलाई को हो रहे हैं। पुलिस कर्मियों को इनका विस्तृत विवरण प्रदान किया गया है। पूर्व में नए कानूनों से संबंधित प्रदर्शनियां भी लगाई गई हैं।



Advertisements

Leave a Comment

Recent Post

Live Cricket Update

Advertisements

Read More Articles