नवरात्र का तीसरा दिन
- आज होगी मॉं कुष्मांडा की आराधना
- पंडालों में चल रहा दुर्गा सप्तशती का पाठ
मंडला महावीर न्यूज 29. शारदेय नवरात्र के तीसरे दिन समस्त पंडालों देवी मंदिरों में माता चंद्रघंटा के लिए दुर्गा सप्तशती पाठ किया गया। जिन्हें सोलह श्रृंगार अर्पित कर लोंग से बनी माला पहनाई गई। माता चंद्रघंटा निर्भयता देने वाली है। जिन्हें सुबह की आरती के बाद भोग लगाए गए। सुबह से मंदिरों में जल ढारने हेतु महिलाओं की भीड़ देखी गई तथा व्रत निरंतर रखा गया। जिन पंडालों में सजावट में कमी रही वह सजावट नवरात्र के तीसरे दिन पूर्ण कर ली गई।
शहर में व ग्रामीण क्षेत्रों में देवी गीत गुजाएंमान हो रहे है और माता के जयकारे लग रहे है। श्रृद्धा के साथ श्रृद्धालु व्रत रखे हुए है। जिनकी जैसी आस्था नंगे पैर रहना, फलाहार से उपवास निर्जला उपवास, फलो से उपवास, तरल पेय पीकर उपवास, वैसे माता के प्रति अपनी सेवा भावना भक्त दिखा रहे है। कुछ जगहों पर देवी के विभिन्न आयोजन चल रहे है। शाम 5 बजे के बाद से सभी जगह माता की आरती की तैयारियां शुरू होने लगती है। लगभग 7 बजे से सभी पंडालों व देवी मंदिरों में आरतियां प्रारंभ हो जाती है।
भक्त पहुंचने लगे दर्शन को
स्थापना के तीसरे दिवस भक्तगण पंडालों में स्थापित मॉं के दर्शन को पहुंचने लगे है। नवरात्र के तीसरे दिन दोपहर बाद ही ग्रामीण क्षेत्रों से लोग देवी दर्शन के लिए पहुंच मॉं का आशीर्वाद लिया। इसी तरह रात्रि को ही सड़कों में शहर के भक्तों की बड़ी संख्या देवी दर्शन के लिए दिखाई दी। आकर्षक साज सज्जा इस बार देवी पंडालों में की गई है जो भक्तों को लुभा रही है। कृषि उपज मंडी परिसर में स्थापित दुर्गा जी की प्रतिमा आकर्षण का केन्द्र है। जिसे देखने भक्तों की संख्या अब बढ़ जाएगी। रात्रि में इस पंडाल में काफ ी भीड़ देखी गई।
आज होगी मॉं कुष्मांडा की आराधना
नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा की जाती है। माता अपनी मंद हल्की हंसी के द्वारा ब्रम्हांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा कहा जाता है। वेदों में है जब सृष्टि नहीं थी। चारों तरफ अंधकार था तब देवी ने अपनी हंसी से ब्रम्हांड की रचना की और ये आदि स्वरूपा आदि शक्ति कहलाई। देवी की आठ भुजाएं है। इनके हाथों में कमंडल, धनुष बाण, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र गदा सुशोभित है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों निधियों को देने वाली जप माला है। माता सिंह पर विराजमान है। जिन्हें भूरे कुम्हड़े की बलि पंसद है। तभी तो ये कुष्मांडा है। देेवी का वास सूर्य मंडल के भीतर लोक में है। सूर्य लोक में रहने की शक्ति व क्षमता इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति प्रभा सूर्य की भांति दिव्यमान है। माता के तेज से दसों दिशाएं अलौकिक है। ब्रम्हांड की सभी वस्तुओं व प्राणियों में माता का वास है।