खुदा की इबादत में महीने भर सजदे करना ही रमजान
- रमजान के महीने में होती है रहमतें और बरकतें
मंडला महावीर न्यूज 29. रमजान का पाक महिना चल रहा है। रोजदार एक माह तक रोजा रखकर खुदा की इबादत कर रहे है। पाक माह रमजान का पहला अशरा दस दिन रहमत, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का है। इस पाक माह में शहर की सभी मस्जिदों में चहल पहल बढ़ गई है। सुबह शाम विशेष नमाज अदा शुरू हो गई है। शहर में रमजान पर्व की रौनक देखी जा रही है। रमजान का महीना रोजेदारों को अपने आचरण की पवित्रता से आत्मिक शुद्धि का अवसर देता है। इस्लाम में रमजान के महीने को अत्यंत पवित्र माना जाता है। माह-ए-रमजान या रमजानुल मुबारक हमें अपने भीतर के गुणों और अच्छाइयों को परखने व उन्हें निखारने का अवसर देता है।
बताया गया कि जब रोजा रखने वाले रोजा (उपवास) रखकर अच्छाइयों की राह पर चल देते हैं, तो अल्लाह रोजेदार से प्रसन्न हो जाते हैं। रोजे के दौरान अपनी इंद्रियों को वश में रखना बहुत जरूरी है। इस दौरान वर्जित और बुरी बातों की तरफ जाना तो दूर, उनके बारे में सोचना भी गुनाह माना जाता है। रोजे के दौरान बुरा कहने, बुरा देखने और बुरा करने की मनाही है, बुरा सोचने, झूठ बोलने, किसी को तकलीफ पहुंचाने, पीठ पीछे बुराई करने की भी मनाही है। रोजेदार को मन, वचन और कर्म से खुद को सात्विक और अनुशासित रखना होता है। आचरण की शुचिता का खयाल रखना होता है। इस दृष्टि से यह आत्मिक शुद्धि का महीना है।
बताया गया कि शुरुआत फर्ज की नमाज से होती है, जो सुबह चार-पांच बजे के बीच होती है। रोजदार सहरी के वक्त कुछ खा लेते हैं और पूरे दिन के उपवास (रोजे) के लिए तैयार हो जाते हैं। वे मस्जिद में फर्ज की नमाज अदा करते हैं और रोजाना के कामों में व्यस्त हो जाते हैं, लेकिन उनके अंतस में रोजे की कैफियत बनी रहती है। पांचों वक्त की नमाज, रात में तरावीह की नमाज में कुरआन का चिंतन व श्रवण आदि। इस्लाम में रोजे को फर्ज माना गया है। रोजे बीमारी, लाचारी या दुख, तकलीफ में ही छोड़े जा सकते हैं।
इस माह में नफ्ल का सवाब फर्ज के बराबर मिलता है और प्रत्येक फर्ज का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है। अल्लाह तआला रोजेदारों के पिछले सारे गुनाह माफ कर देता है। जो लोग किसी रोजेदार को इफ्तार करवा देते हैं तो इस कारण उस व्यक्ति के तमाम गुनाह माफ हो जाते हैं। अल्लाह तआला फरमाते है कि मोमिन की रोजी बढ़ा दी जाती है। रमजानुल मुबारक एक दूसरे के हमदर्दी का भी महीना है। सब्र करने का महीना है रमजानुल मुबारक रमजान त्याग का महीना है। अल्लाह ने अपने बंदों को बुराइयों को त्याग कर अच्छे मार्ग पर चलने का यह सुनहरा मौका प्रदान किया है।
रमजान में होते है तीन अशरे
रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। जिसमें एक माह तक रोजे रखे जाते हैं। इस्लाम के मुताबिक पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है। रमजान के पहले दस दिन (1 से 10 वें) में पहला अशरा, दूसरे 10 दिन (11 वें दिन से 20 वें दिन) में दूसरा अशरा और तीसरे दिन (21 से 30 वें दिन) में तीसरा अशरा बंटा होता है। इस तरह रमजान के महीने में तीन अशरे होते हैं। पहला अशरा रहमत का होता है, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है।
रमजान के के आखिरी 10 दिन एतकाफ के
रमजान में की जाने वाली इबादतों में से एक एतकाफ भी है। रमजान मुबारक महीने के तीसरे अशरे यानि आखिर के 10 दिनों में कुछ मुसलमान एतकाफ में बैठते हैं। एतकाफ के लिए मुसलमान पुरुष रमजान के आखिर के 10 दिनों तक मस्जिद के किसी कोने में बैठकर इबादत करते हैं और खुद को परिवार व दुनिया से खुद को अलग कर लेते हैं। वहीं महिलाएं घर के किसी कमरे में पर्दा लगाकर एतकाफ में बैठती हैं। एतकाफ के दौरान लोग 10 दिनों तक एक ही जगह पर खाते-पीते, उठते-बैठते और सोते जागते हैं और नमाज-कुरान पढ़कर अल्लाह की इबादत करते हैं। हालांकि दैनिक क्रियाकलाप के लिए उन्हें इजाजत होती है।
इनका कहना है
यह महीना सभी मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र माना जाता है। रमजान के दौरान रोजा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। रोजेदार के मन में किसी तरह का गलत ख्याल तक नहीं होना चाहिए। रोजे का मतलब भूखे पेट रहकर अल्लाह की इबादत करना नहीं है, बल्कि सही मायनों में जीवन से बुराइयों को मिटाकर अच्छाइयों को अपनाना है, जिससे समाज में शांति और अमन कायम रहे।
रोजा इफ्तार में हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मो के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यह समाज में भाईचारा बढ़ाने का एक जरिया है। अल्लाह भी अपने बंदों से यही उम्मीद करता है कि सब मिल-जुलकर रहें। सही मायनों में रमजान प्रेम का महीना है। अल्लाह ने अपने बंदों को बुराइयों को त्याग कर अच्छे मार्ग पर चलने का यह सुनहरा मौका प्रदान किया है।
रमजान महिने में पाक ग्रंथ कुरआन उतारा गया। यह महिना मोमिन भाईयों के लिए बहुत पाक होता है और इस माह में जो शख्स अल्लाह की राह में एक नेकी करता है तो अल्लाह तआला उसे उस नेकी के बदले 70 नेकी का शबाव मिलता है। बिना किसी बुराई से बचते हुए रोजे में अल्लाह की इबादत की जाती है।
यह महिना सभी मुसलमानों के लिए पवित्र माह है, रमजान के दौरान रोजा इस्लाम के पांच स्तंभो में से एक है। इस्लाम धर्म का तीसरा स्तंभ रोजा जो इस्लामी नौवें महिने से शुरू होता है। इस्लाम धर्म मानने वाले समस्त अनुयायिओं बालिका, मर्द और औरत पर फर्ज है कि वह रमजान के 30 रोजे रखे। बीमार और लाचार को छोड़कर रोजा सबको रखना अनिवार्य है।
इंसान गलतियों का पुतला है और अक्सर वह गलतियां करता है। इसलिए इस मौके को हाथ से जाने न दें और ईमानदारी से अल्लाह की इबादत करें। बुराइयों को त्यागने वाला ही सही मायनों में अल्लाह की इबादत करने का सच्चा हकदार है। रोजा आत्मा की शुद्धता का सबसे उत्तम साधन है।