मचलेश्वर मेला- एक सदी पुरानी पंरपरा
- महाशिवरात्रि से होलिकेा दहन तक होता है आयोजन
- प्रदेश भर में मशहूर हिरदेनगर का पशु मेला
मंडला महावीर न्यूज 29. जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर मटियारी बंजर सुरपन के त्रिवेणी संगम में करीब एक सदी पूर्व से भरने वाला ऐतिहासिक पशु मेला आज महाशिवरात्रि पर्व से शुरू होगा, जो होलिका दहन तक चलेगा। हालांकि मेले का औपचाारिक शुभारंभ आज शिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ की पूजन, पाठ के साथ शुरू किया जाएगा। वहीं इस मेले में शबाव आखिरी चार दिनों तक ही रहता है। 100 वर्षों पूर्व से भरने वाला यह ऐतिहासिक पशु मेला संभाग ही नहीं प्रदेश में अपना एक अलग महत्व रखता है। इस पशु मेले का मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं अन्य प्रदेशों के व्यापारी, सर्कस, खेल-तमाशे, पशु व्यापारी बड़ा बेसब्री से इंतजार करते हैं।
बताया गया कि यह मचलेश्वर मेला बंजर सुरपन के तट पर रेत मैदान में प्रारंभ हुआ था, जो वृहत रूप लेते हुए मेले का क्षेत्रफल बढ़ गया। आज भी इस मेले को भूमि-स्वामी के अधिकांश जमीन में लगाया जा रहा है। बताया गया कि भूतपूर्व मालगुजार पंडित मचलप्रसाद मिश्र द्वारा मेले को वृहत करने एवं हिरदेनगर की पहचान बनाने के उद्देश्य से मेला लगाया जाता है। वर्ष 1970 के पूर्व इस मेले का नाम मचलेश्वर मेला हिरदेनगर था, लेकिन सन् 1971 से लेकर वर्ष 2003 तक इसे सिर्फ हिरदेनगर मेला के नाम से जाना जाने लगा। मेले का नाम राज्य शासन द्वारा मचलेश्वर मेला हिरदेनगर किया गया है। अब मेले में पशुओं के साथ ही मसाला, कपड़ा, बर्तन समेत अन्य बड़े-बड़े व्यवसायी अलग-अलग क्षेत्रों से व्यापार करने पहुंचते है।
रूझान हो रहा कम
मचलेश्वर मेले के नाम से प्रदेश भर में मशहूर हिरदेनगर का पशु मेला अपनी पहचान खोने की कगार पर पहुंच गया है। खेती के आधुनिक संयंत्र आ जाने से जहां पशुओं की उपयोगिता खेती में घट गई है, वहीं हर कस्बे में बाजार विकसित हो जाने से लोग जरूरत का सामान खरीदने अब इस मेले में कम ही पहुंचते हैं। साल दर साल मेले में पशुओं की आवक तो कम हो ही रही है, और लोगों का रूझान भी कम होता नजर आ रहा है। अगर यही हालात रहे और मेले को नया स्वरूप नहीं दिया गया तो अगले कुछ वर्षों में मेले का अस्तित्व ही मिट जाएगा।
100 वर्ष पुरानी परंपरा
जानकारी अनुसार ग्राम हिरदेनगर में लगने वाला मचलेश्वर मेला करीब 100 साल पहले से लगाया जा रहा है। बताया गया कि मेले की शुरूआत 1890 में हुई थी। आयोजित होने वाला मेला बंजर मटियारी और सुरपन नदी के संगम में लगता था। मेले के दौरान बारिश और तूफान आ जाने से मेले में अधिक नुकसान व्यापारियों को उठाना पड़ता था। जिसके कारण यह मेला हिरदेनगर में लगने लगा। शिवरात्रि से मेला लगने के कारण इस मेले का नाम भगवान शिव के नाम पर सन 1900 में मचल मेले का नाम दिया गया। 100 साल पहले मेले का अनुबंध यहां के जनपद सभा और मालगुजार के बीच हुआ था। मालगुजार और अन्य कृषकों की निजी भूमि पर यह मेला लगाया जाता था। अनुबंध के अनुसार शिवरात्रि से लेकर होलिका दहन तक यह मेला निजी स्वामित्व की भूमि पर लगाया जाने लगा। खेतो में फसल होने के बावजूद भी मेले के लिए भूमि मालिक जमीन नि:शुल्क देते थे, जो परंपरा आज भी बरकरार है। यहां के लोग इस पुरानी पंरपरा का पालन आज भी कर रहे है। वर्ष 1970 में इस मेले का नाम हिरदेनगर मेला कर दिया गया। वर्ष 2003 के बाद इस मेले को भगवान शिव और पार्वती के नाम पर मचलेश्वर मेला कर दिया गया।