- वैज्ञानिकों के लिये भी अबूझ पहेली बनी दादागुरु की निराहार उपासना
- केवल एक गिलास नर्मदा जल के सहारे ही निकल पड़े नर्मदा संरक्षण का संदेश देने
- निवास क्षेत्र पहुंची दादागुरु की नर्मदा परिक्रमा, नर्मदा भक्तों ने किया भव्य स्वागत
- दादागुरु के दर्शन करने उमड़ा जनसैलाब, देर शाम डिंडोरी जिले की बिछिया पहुंची यात्रा
- प्रतिदिन 25-30 किमी की करते हैं पद यात्रा
मंडला महावीर न्यूज 29. वर्षों से अनवरत निराहार रहकर नर्मदा भक्ति में लीन महाकौशल के महातपस्वी संत दादागुरु भैया जी सरकार की नर्मदा परिक्रमा यात्रा शुक्रवार को मनेरी के रास्ते निवास क्षेत्र पहुंची। यात्रा सुबह ग्राम भलवारा से होते हुए ग्राम गुंदलई, भीखमपुर होते हुए बिझौली पहुंची। जहां भक्तजनों ने भारी संख्या में बैंड-बाजों, फूल-मालाओं और मात् श्री नर्मदे हर, ओम मां के जयकारों के साथ स्वागत किया। यात्रा दोपहर विश्राम के बाद अमगांव, बिसौरा मानिकपुर, देवहरा होते हुए शाम को शहपुरा के बिछिया पहुंची। जहां रात्रि विश्राम हुआ यहां यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। जहां भक्तजनों ने दादागुरु का आशिर्वाद लिया। बताया गया की यात्रा में निवास थाना प्रभारी वर्षा पटेल, जनपद पंचायत सीईओ दीप्ति यादव, शहपुरा एसडीएम, शहपुरा थाना प्रभारी एसएल मरकाम सहित स्थानीय जनप्रतिनिधि व समाजसेवी मौजूद रहे।
दादागुरु की सेवा में लगे शिष्यों ने बताया कि ओंकारेश्वर से नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत के बाद से प्रतिदिन करीब 25 से 30 किमी पैदल यात्रा की जा रही है। कभी-कभी यात्रा 40 किमी की भी हो जाती है। इतना ही नहीं परिक्रमा के दौरान साथ चल रहे अन्य परिक्रमावासियों के उत्साहवर्धन के लिये दादा गुरु लंबे लंबे घाटों पर दौड़ लगाकर आगे बढ़ते हैं। दादा गुरु के जत्थे में करीब एक हजार अनुयायी उनके साथ पैदल यात्रा कर रहे हैं। यात्रा के पहले प्रतिदिन सुबह दादागुरु के सान्निध्य में मां नर्मदा की महाआरती का भी आयोजन किया जाता है। इसके बाद सुबह करीब आठ से साढ़े आठ बजे यात्रा शुरू हो जाती है, जो करीब 10 से 15 किमी यात्रा होने के बाद दोपहर एक बजे के लगभग यात्रा का पड़ाव होता है। एक घंटे के पड़ाव के दौरान यात्रा में शामिल अनुयायी भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं और दोपहर लगभग दो बजे दूसरे पड़ाव की यात्रा सूर्यास्त के पहले तक जारी रहती है। दूसरे पड़ाव में भी 10 से 15 किमी की यात्रा होती है।
नर्मदा संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिये जनमानस को करते हैं प्रेरित
रात्रि के समय अनुयायियों व अन्य परिक्रमावासियों के भोजन प्रसादी के बाद दादा गुरु के प्रवचन होते हैं, जिसका अनुयायी और धर्मप्रेमी जनता लाभ लेते है। दादागुरु सतत् नर्मदा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं जिससे उनके अनुयायियों में मां नर्मदा जल, नर्मदा तटों एवं पेड़ पौधों के संरक्षण और उनकी पवित्रता के प्रति जागरूक होकर समाज में कार्य करें। उनका स्पष्ट संदेश होता है कि नर्मदा नदी नहीं है, ये वृक्ष केवल वृक्ष नहीं हैं बल्कि साक्षात देवी-देवता हैं जो जीव जगत के लिये जीवनोपयोगी तत्व हैं, जिनके अभाव में पृथ्वी में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
नर्मदा जल दादा गुरू की बनी ऊर्जा
दादागुरु का कहना है कि हमारे पास जो शक्तियां हैं, वे नदियों के रूप में हैं, उनके जल पर केन्द्रित होकर जिया जाए, प्रकृति पर केन्द्रित होकर जीवन जिया जाए। इनका जल, इनकी वायु ही हमारे लिए आहार का काम करती है। ये उन असाधारण नदियों का जल है, जिनके संरक्षण की जरूरत है। उनके महत्व को समझाने के लिए और पर्यावरण की रक्षा के लिए मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। दादागुरु लंबे समय से नर्मदा के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं, पर जब जागरूकता नहीं आई तो उन्होंने ध्यान आकर्षण के लिए ऐसा काम करने की ठानी, पर इसे मां नर्मदा का चमत्कार ही कहेंगे कि चार साल सिर्फ नर्मदा जल ही उनकी ऊर्जा का स्रोत बना हुआ है।
निराहार जीवित रहने की पहली को डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की टीमों ने की हैं जांच
लगभग साढ़े चार वर्षों से निराहार रहकर सतत् यात्राएं करके जीवन के लिये अन्न की अनिवार्यता की बात को झूठी साबित करने वाले दादागुरु ने 17 अक्टूबर 2020 से यह महाव्रत शुरू किया था। लगभग साढे चार वर्षों से दादागुरु मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। इस दौरान दादागुरु ने अन्न, भोजन और फलाहार सब त्याग दिया है। साढे चार वर्षों में उनकी यह लगातार चौथी मां नर्मदा की परिक्रमा है। इतना ही नहीं इस दौरान वे अनेकों बार रक्तदान भी किया है। दादागुरु नर्मदा मिशन के जरिये नर्मदा की अविरल धारा के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। दादागुरु के इस तप को देखकर वैज्ञानिक और डॉक्टर भी हैरान हैं। मेडिकल काउंसिल और कई अस्पतालों के डॉक्टरों की टीम ने उनकी जांच भी की। सात दिनों तक नियमित जांच की गई। उनके द्वारा लिया जाने वाले जल की जांच की गई। हैरानी की बात है कि टीम भी इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं बता सकी कि यह कैसे संभव है। हालांकि उन पर जल्द ही शोध पत्र जारी किया जाएगा।
भारतीय परिधान के लिए करते हैं प्रेरित
दादागुरु स्वयं केवल श्वेत लंगोट धारण करते हैं और अपने अनुयायियों को भी भारतीय परिधान धोती कुर्ता आदि पहनने के लिये प्रेरित करते हैं, यह परिक्रमा जहां से भी गुजरती हैं वहां का वातावरण भक्तिमय तो हो ही जाता है, साथ ही पूर्णतया भारतीय परिधान मय भी हो जाता है, भारतीय परिधान में दर्शनार्थियों को दादागुरु की विशेष स्नेह प्राप्त होता है जिसके कारण सभी भक्तजन उनके दर्शन करने पहुंचने से पहले धोती कुर्ता अनिवार्य रूप से धारण कर लेते हैं। दादागुरु के साथ चल रहे उनके अनुयायी एवं परिक्रमावासी भी पूर्णतया श्वेत धोती-कुर्ता धारण किये रहते हैं जिससे पूरा वातारण भारतीय परिधानमय हो जाता है।
कटे वृक्षों को देख क्रोधित हुए भैया जी सरकार दादा गुरु
वर्षों से मां नर्मदा नदी एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिये अनेकों आंदोलन करने वाले और नर्मदा जल के महत्व को जनमानस तक पहुंचाने के लिये अनेकों वर्ष से अन्न का त्याग कर केवल नर्मदा जल ग्रहण कर जीवन यापन करने वाले भैया जी सरकार दादा गुरु जहां कहीं भी कटे वृक्ष देखते हैं, तो अत्यधिक क्रोधित हो जाते हैं। कुछ इसी तरह का क्रोध ग्राम मनेरी में देखने को मिला, जब परिक्रमा पर निकले दादा गुरु को एक पीपल का वृक्ष कटा हुआ दिखा। दादागुरु ने ग्रामीणों को डांटते हुए कहां कि ये वृक्ष नहीं हैं ये प्रत्यक्ष रूप से देवता हैं जो हमारे बीच में हैं, जिनके संरक्षण से ही हमारा जीवन संभव है। यदि ये नहीं रहेंगे तो मानव जीवन की कल्पना करना भी संभव नहीं है। विकास के नाम पर काटे गये ये पेड़ मानव जीवन के भविष्य को दर्शा रहे हैं। हम सभी को वृक्षों के संरक्षण के लिये आगे आना चाहिए।
बिछिया में हुई पुष्प वर्षा
बताया गया कि दादा गुरु के आगमन को लेकर युवाओं से बुजुर्ग तक में खासा उत्साह देखने को मिला वही मंडला जिले की सीमा के बाद जैसे ही दादा गुरु की यात्रा डिंडोरी जिले की सीमा शहपुरा विकासखंड के बिछिया पहुंची यहां बैंड बाजे आतिशबाजी के साथ भव्य स्वागत समाजसेवियों द्वारा किया गया इतना ही नहीं पथ मार्ग पर पुष्पों की वर्षा कर दी साथ ही छोटी छोटी बच्चियों द्वारा कलश यात्रा के साथ स्वागत किया गया वही रात्रि में महाआरती के बाद प्रवचन हुए और रात्रि विश्राम हुआ।