- धान कटाई अंतिम चरण में, जारी है किसानों का नरवाई जलाना
- विभागीय अधिकारी नहीं रोक पा रहे नरवाई जलाने की प्रक्रिया
मंडला महावीर न्यूज 29. जिले में धान एवं गेहूँ मुख्य फसल के रूप में ली जा रही है। उक्त फसलों की कटाई मुख्य रूप से कम्बाइंड हार्वेस्टर के माध्यम से जिले के कई क्षेत्रों में की जाती है। कटाई के बाद कुछ किसान फसलों की नरवाई में आग लगा देते है। जिससे आगजनी की घटनाएं भी सामने आती है। नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति में भी कमी आती है। इसके साथ ही पर्यावरण भी गंभीर रूप से प्रभावित होता है। सेटेलाईट मेपिंग में विगत वर्षो में धान एवं गेंहूँ की फसलों की कटाई के बाद मंडला जिले में नरवाई जलाने की सैकड़ों घटनाएं घटी है।
जानकारी अनुसार विगत वर्ष किसान कल्याण व कृषि विकास विभाग द्वारा राष्ट्रीय फसल अवशेष प्रबंधन नीति 2014 के अंतर्गत तत्कालीन कलेक्टर मंडला की अध्यक्षता में जिला स्तरीय फसल अवशेष प्रबंधन समिति का गठन किया गया था। जिसमें कहां गया था कि फसलों की कटाई में उपयोग किये जाने वाले कंबाईन हार्वेस्टर के साथ स्ट्रा मैनेजमेण्ट सिस्टम के उपयोग को अनिवार्य किया जाना आवश्यक है। रबी सीजन में गेंहू की नरवाई से कृषक भूसा प्राप्त कर सकते है, कृषकों की मांग को देखते हुए स्ट्रा मैनेजमेण्ट सिस्टम के स्थान पर स्ट्रा रीपर के उपयोग को अनिवार्य करने के निर्देश दिए गए थे। जिसमें कहां गया था कि कम्बाईन हार्वेस्टर के साथ एसएमएस व स्ट्रा रीपर में से कोई भी एक मशीन साथ में रहना अनिवार्य रहेगा।
बताया गया कि जिले में खरीफ फसल की कटाई का कार्य अंतिम चरण में चल रहा है। प्राय: यह देखा जाता है कि किसान फसल काटने के बाद आगामी फसल के लिए खेत तैयार करने और अपनी सुविधा के लिए खेत में आग लगाकर तने के डंठल व फसल के अवशेष को नष्ट कर देते हैं जबकि नरवाई जलाने से विभिन्न तरह के नुकसान होने की परिस्थिति निर्मित होती है। वहीं जिले भर में खरीफ की फसल पक कर तैयार है। धान की कटाई जोरों पर चल रही है। इसके साथ ही किसानों द्वारा अपने अपने खेतों में धान की नरवाई भी जलाई जा रही हैै। मंडला से जबलपुर मार्ग, मंडला से बिछिया मार्ग, पिंडरई मार्ग होते हुए नैनपुर जाने वाले मार्ग में किसानों के खेतों की नरवाई दूर दूर तक जली नजर आ रही है।
सांस के मरीजों का सबसे ज्यादा परेशानी
किसान अपने खेतों में धड़ल्ले से पराली जला रहे हैं। इन्हें न तो प्रशासन की कार्रवाई का डर है और न ही कोर्ट के आदेश की परवाह। ऐसे में नरवाई जलाने के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। नरवाई जलाने के दौरान उठने वाले धुएं के फैलाव से लोगों को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिन गांवों में बुजुर्ग व दमा के मरीजों है उन्हें सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। इन दिनों नरवाई जलाने से लगातार फसलों पर भी खतरा मंडरा रहा है जो खेत में पक कर तैयार हैं और जिनकी अब तक कटाई नहीं की गई है। यदि आगजनी की घटना हो जाए तो किसानों को आर्थिक क्षति होने की आशंका बनी रहती है।
नहीं हो रही कार्रवाई
विगत कुछ वर्षो में कुछ किसानों द्वारा नरवाई जलाकर छोड़ देने से अन्य किसानों की फसलें प्रभावित हो गई हैं व आगजनी से फसल के साथ ही कृषि उपकरण, मवेशियों का चारा समेत अन्य सामान जलने से किसान भयभीत नजर आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में नरवाई जलाकर छोडऩे वालों पर कार्रवाई की भी मांग उठ रही है। नरवाई जलाने के दौरान आग फैलने से होने वाली क्षति पर कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन प्रशासन एवं पुलिस द्वारा ऐसे किसानों पर कार्रवाई नहीं की जा रही है। जिससे कई लोग धड़ल्ले से नरवाई जला रहे हैं। जिसके कारण दूसरे लोग आर्थिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
उर्वरक क्षमता होती है कम
टेक्नोलॉजी के दौर में लोग हार्वेस्टर से अपनी फसलों की कटाई करा लेते हैं उसके बाद बची हुई नरवाई में आग लगाकर उसे नष्ट करते हैं जो कि बेहद हानिकारक होती है। नरवाई जलाने से ना सिर्फ मिट्टी की उर्वरा क्षमता कम होती है बल्कि वायु प्रदूषण का प्रभाव बढ़ जाता है, लेकिन उसके बाद जो भी किसान बेखौफ होकर लगातार नरवाई में आग लगाने का कार्य कर रहे हैं
जमीनों को होता है भारी नुकसान
नरवाई जलाने पर जो भूमि का तापमान होता है, जिसके कारण हमारे फसलों के लिए लाभदायक जीव जंतु मर जाते हैं और जो लाभदायक क्रिया उन जीव जंतु के द्वारा की जाती है। वह भी समाप्त हो जाती है और खेतों की उर्वरक क्षमता भी कम हो जाती है। जिससे खेतों की उर्वरकता के साथ खेतों में उत्पादन भी प्रभावित होता है, नरवाई जलाने से निकलने वाला धुंए से ग्लोबल वार्मिंग जैसे वायु प्रदूषण भी तेजी से बढ़ता है।
ऐसे कर सकते है खेतों की नरवाई समाप्त
जिले की प्रमुख फसलों में धान, गेहूं समेत अन्य फसलें लगाई जाती है। जिनके परिपक्क होने के बाद उनमें से अवशेष बच जाता है। इस बचे हुए अवशेष को किसानों द्वारा खेतों में ही जलाया जाता है, जिससे अन्य किसानों को नुकसान के साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। इससे बचने के लिए फसलों का बचे अवशेष को खाद बनाने के लिए बाजार में डी-कंपोजर आता है, जिसे गर्म पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव कर देने से नरवाई समाप्त हो जाती है और वह खाद का रूप ले लेती, जिससे कि खेतों की उर्वरक क्षमता बराबर बनी रहती है।
नरवाई जलाने वालों पर अर्थदण्ड का प्रावधान
- फसल अवशेषों को खेतों में जलाया जाना प्रतिबंधित
मंडला महावीर न्यूज 29. कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी सोमेश मिश्रा द्वारा नरवाई जलाने वालों पर अर्थदण्ड अधिरोपित करने के संबंध में आदेश जारी किए गए हैं। जारी आदेश के अनुसार 2 एकड़ से कम पर 2500 प्रति घटना पर दो से पांच एकड़ तक 5 हजार प्रति घटना पर एवं 5 एकड़ से अधिक पर 15 हजार प्रति घटना पर अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है।
जिले में रबी फसल के अन्तर्गत बोई जाने वाली फसलों की कटाई के पश्चात किसानों के द्वारा नरवाई (फसलों के अवशेषों) जला दी जाती है जिसके कारण भूमि में उपलब्ध जैव विविधिता समाप्त हो जाती है। भूमि की ऊपरी परत में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो आग लगने के कारण जलकर नष्ट हो जाते हैं। साथ ही नरवाई जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है। भारत सरकार द्वारा खेतों में फसल अवशेष नरवाई जलाने की घटनाओं की मॉनिटरिंग सेटेलाईट के माध्यम से की जा रही है। प्रदेश में नरवाई जलाने की घटनाएं मुख्यत: गेहूँ की फसल कटाई के बाद होती है जो लगातार बढ़ती जा रही है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के क्रम में फसलों की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने से प्रतिबंधित किया गया है। पर्यावरण विभाग के नोटिफिकेशन द्वारा निर्देश जारी किये गये हैं जिसके अन्तर्गत नरवाई जलाने की घटनाओं पर अर्थदण्ड अधिरोपित करने का प्रावधान किया गया है जिसमें 2 एकड़ से कम पर 2500 प्रति घटना पर दो से पांच एकड़ तक 5 हजार प्रति घटना पर एवं 5 एकड़ से अधिक पर 15 हजार प्रति घटना पर अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है।