लव कुश की जन्म नगरी सीतारपटन

  • लव कुश की जन्म नगरी सीतारपटन
  • सीता रपटन में वाल्मीकि ऋषि ने की थी संस्कृत भाषा में रामायण की रचना
  • सुरपन नदी के तट पर स्थित है सीता रपटन
  • 15 से 17 नवंबर तक लगेगा प्रसिद्ध मेला

मंडला महावीर न्यूज 29. जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर ग्राम अंजनिया के पास सीतारपटन सुरपन नदी के तट पर स्थित है, यह नदी झिगराघाट से होकर बंजर नदी तक जाती है। जनश्रुति के अनुसार सीतारपटन लव कुश की जन्म नगरी है। स्थानीय लोगों के अनुसार सीतारपटन में ही भगवान लव कुश का जन्म हुआ था। यहीं महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना भी की थी। बताया जाता है कि सीता रपटन में माता सीता जी सुरपन नदी से पानी लेकर बाल्मीकि आश्रम आ रही थीं, इसी दौरान चट्टाननुमा पत्थरों से फिसलकर गिर गई थी, उसी समय से इस स्थान को सीता रपटना कहां जाने लगा है।

यहां आज भी चट्टान के बीचों बीच एक प्राकृतिक फिसल पट्टी बनी हुई है। यहां आने वाले लोगों को आज भी इस फिसल पट्टी से फिसलते देखे जा सकते है। इसी के पास ही चट्टान नुमा पत्थरों को बजाने से नगाड़ों की आवाज भी आती है। माना जाता है की लव-कुश के जन्म के समय नगाड़े बजाये गए थे जो अब पत्थर में बदल चुके हैं। यहाँ एक विशेष प्रजाति का पेड़ भी मौजूद है। जिसे अनजान पेड़ के नाम से जाना जाता है। यहाँ कई वनस्पति शास्त्री भी आये पर इस पेड़ का नाम जानने में कामयाबी नहीं मिली। माना जाता है की इसी पेड़ के नीचे महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी।


जानकारी अनुसार अंजनिया से महज कुछ ही दूरी पर स्थित सीतारपटन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। पर्यटन स्थल होने से यहां देशी-विदेशी सैलानी भी घूमने के लिए पहुंचते हैं, लेकिन यहां जरूरी सुविधाओं के अभाव सैलानियों और मंदिर पहुंचे भक्तों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। स्थानीय जनों की मान्यता के अनुसार सीतारपटन लव कुश की जन्म नगरी है। इसी स्थान पर वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की।

स्थानीय कलाकर मूर्तियों की कर रहे साज सज्जा 

बताया गया कि सीतारपटन निवासी मान्या पांडे द्वारा यहां स्थापित मूतियों का रंग रोगन और साज सज्जा कर रहे है। मान्या आर्ट द्वारा प्रतिमाओं का रंग रोगन कर अंतिम रूप दिया जा रहा है। इनके द्वारा सीतारपटन में जगह-जगह पेंटिग की गई है, जो लोगों को खूब भा रही है।

तीन बार होता है पतझड़

सीतारपटन में नदी किनारे लगे पेड़ के नीचे वाल्मिकि ऋषि ने तपस्या की और रामायण की रचना भी की थी। यहां दो ऐसे पेड़ आमने- सामने लगे है जिसमें एक पेड के नीचे सीता जी की कुटिया बनी होना बताया जाता है जो एक छोटी गुफा जैसे है। वही दूसरे पेड़ में 3 बार पतझड़ आता है लेकिन यहां नया पत्ता कब आता है किसी को पता ही नहीं चलता। झडऩे वाले पत्ते कहां उड़ जाते है ये भी पता नहीं है।

पत्थरों से आती है नगाड़ों की आवाज 

लोगों का मानना है कि जब भगवान श्रीराम ने प्रजा के कहने पर माता सीता को महल से निष्कासित कर दिया तो सीता जी ने वनवास के दौरान वाल्मिकि ऋषि जी के आश्रम में ही शरण ली थी। तब ही वनवास के दौरान यहां सीता जी ने दो पुत्र लव और कुश को जन्म दिया था। यहां चट्टाननुमा पत्थरों को बजाने से नगाडे जैसे मधुर आवाज सुनाई देती है। लोगों का मानना है कि ये नगाड़े ही थे जो अब पत्थर के स्वरूप में नजर आते हैं। इन नगाडो को लव कुश के जन्म की खुशी में बजाये जाने का दावा भी किया जाता है।

जरूरी सुविधाएं है नदारद 

हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। यहां आयोजित होने वाले मेले में मंडला सहित जबलपुर, रायपुर, छतीसगढ़, कवर्धा आदि जैसे अन्य जगहों से व्यापारी तरह-तरह की सामग्री लेकर पहुंचते हैं। वहीं अब तक जिला प्रशासन की ओर से यहां कोई तैयारी नहीं की गई है। स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं, सैलानियों के लिए किसी तरह की सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए सामुदायिक स्वच्छता परिसर तक की सुविधा नहीं है। पर्यटन स्थल होने के बाद भी यहां इलाज के लिए जरूरी सुविधाएं नदारद हैं। यहां कहने के लिए उप स्वास्थ्य केंद्र है लेकिन इसकी भी हालत ठीक नहीं है।

तीन दिन भरेगा मेला 

जिले के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में शामिल सीतारपटन क्षेत्र भी शामिल है। यहां साल भर जिले समेत अन्य जिले प्रदेश के लोग आते है। यहां तीन दिवसीय भरने वाला मेला भी प्रसिद्ध है। इस वर्ष मड़ई का आयोजन 15 से 17 नवम्बर तक किया जाएगा। इस मड़ई को लेकर स्थानीय लोग काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं। वहीं प्रशासन द्वारा इस पर्यटन स्थल में जरूरी सुविधाएं मुहैया नहीं कराए जाने से आने वालें लोगों और स्थानीय लोगों में नाराजगी भी हैं।

रिपोर्टर- गर्जेन्द्र पटेल, अंजनिया, मंडला ✍️


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