- चौगान मढिय़ा की मड़ई में सफेद वस्त्र में शामिल हुए लोग
- सफेद वस्त्रों में उमड़ा जनसैलाब
- जमकर भरी चौगान मड़ई, जिले समेत दूसरे जिले के लोग भी पहुंचे
मंडला महावीर न्यूज 29. दीपावली के बाद से जिले भर में मड़ई-मेलों की शुरूआत हो चुकी है रोजाना किसी न किसी गांव में मड़ई-मेला का आयोजन किया जा रहा है। इसकी कड़ी में सोमवार को पर्यटन स्थल रामनगर के प्रसिद्ध चौगान मढिय़ा के पास मड़ई का आयोजन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासी समाज समेत अन्य लोग शामिल हुए। चौगान सहित आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में ग्रामीण चंडी लेकर पहुंचे थे। चौगान की मढिय़ा में पूजन-अर्चन के साथ मड़ई की शुरूआत की गई।
सफेद वस्त्रों में शामिल होते हैं
इस चौगान की मड़ई की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि इसमें अधिकांश आदिवासी समाज के सभी स्त्री-पुरूष सफेद वस्त्र पहनकर शामिल होते हैं। बताया गया कि इनमें सफेद कलर को शांति का प्रतीक और शुभ माना जाता है यहां तक विवाह आयोजन में भी महिलाएं सफेद साड़ी पहनकर ही शामिल होती हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि चौगान की मढिय़ा आदिवासी समाज के लोगों की कुल देवी मानी जाती है। जिनके दर्शनों के लिए मंडला ही नहीं दूसरे जिलों और प्रदेशों से भी लोग यहां पहुंचते हैं, यहां मढिय़ा में एक सीढ़ी लगी हुई है जिसे स्वर्ग की सीढ़ी कहा जाता है। इनके पूजन के बाद यहां से चंडी यात्रा निकाली जाती है।
जमकर हुई खरीदी
मड़ई में आसपास के गांवों से भी लोग पहुंचते हैं। चंडी दर्शन के लिए मंडला सहित आसपास के जिलों से भी लोग सोमवार को चौगान पहुंचे थे। यहां हर साल जुटने वाली भीड़ को देखते हुए आसपास के क्षेत्रों से तरह-तरह की सामग्री को लेकर व्यापारियों ने दुकानें लगाई थी जहां से लोगों ने अपनी उपयोग की सामग्री की खरीदी की।
मेले से खरीदी सामग्री पहले माता के दरबार में की भेंट
- नकचुन्ना दरबार में लगा मेला, दूर-दूर से आए लोग
घुघरी। विकासखंड घुघरी से महज पांच किमी दूर पोषक ग्राम सैलवारा के किसान टोला की टेकरी में विराजित मां शताक्षी का बहुत ही सुंदर अद्भुत मंदिर है। क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि यह स्थान करीब 500 वर्ष से भी अधिक पुराना है। पहले यहां पर एक छोटा सा चबूतरे में पत्थर की मूर्ति विराजमान थी। जिस पर लोगों की आस्था माता नकचुन्ना देवी पर बढ़ती गई और लोगों की आस्था केन्द्र बन गया। यहां के बुजूर्ग बताते है कि नकचुन्ना दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यहां धार्मिक आयोजन समय-समय पर होते है। इसके साथ ही यहां प्रतिवर्ष आंवला नवमी के दिन मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस वर्ष भी शताक्षी माता के दरबार में मेले का आयोजन किया गया।
बताया गया कि नकचुन्ना दरबार में आयोजित होने वाले मेले में मनोरंजन के साथ दरबार के प्रति आस्था के कारण यहां लोग दूर-दूर से पहुंचे और माता को प्रसाद का चढ़ावा चढ़ाया गया। यहां आने वाले लोग मेले से ली हुई सामग्री को पहले माता के दरबार में चढ़ाए, जिसके बाद उस सामग्री को अपने साथ घर ले गए। इस मेले की पहचान गन्ने से है। मेले में आने वाला हर व्यक्ति गन्ना की भेेट माता को चढ़ाकर अपने साथ ले जाता है। यहां हर किसी की मुराद माता के दर्शन मात्र से पूरी होती है।