देवउठनी एकादशी पर जागेंगे भगवान, मांगलिक कार्य होंगे शुरू

  • देवउठनी एकादशी पर जागेंगे भगवान, मांगलिक कार्य होंगे शुरू
  • तुलसी पूजा के बाद बजेगी शहनाई
  • मैरिज गार्डन, होटल होने लगे बुक

मंडला महावीर न्यूज 29. देवताओं के जागने के बाद मंगल आयोजनों का दौर आरंभ हो जाएगा। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को लोग देवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि क्षीर सागर में चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। इस बार देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को पड़ रही है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर श्री विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है।

जानकारी अनुसार चार माह बाद देव 12 नबंवर को जागेंगे तो एक बार फिर शहनाई बजेगी। देवउठनी ग्यारस को तुलसी-सालिगराम विवाह के साथ शुरू होने वाले शुभ मुहूर्त शुरू हो जाएगें। नवंबर माह में 9 दिन और दिसंबर माह में 10 दिन शादियों के शुभ मुहूर्त है। इस वर्ष नवंबर और दिसंबर में 19 शुभ विवाह मुहूर्त रहेंगे। देवउठनी एकादशी पर्व 12 नवंबर को मनाया जाएगा और इस दिन तुलसी-सालिगराम विवाह के साथ मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। चार महीने तक भगवान विष्णु के विश्राम के कारण विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य वर्जित रहे। 16 नवंबर से विवाह मुहूर्त की शुरूआत होगी, लेकिन 16 दिसंबर से खरमास की शुरुआत होगी। जो 15 जनवरी तक चलेगा। इन मुहूर्त में अधिक शादियां है और इसके लिए होटल, लॉन, बैंड, बाजे समेत अन्य तैयारियों की बुकिंग शुरू हो गई है।

बुकिंग हुई शुरू 

देवउठनी के बाद शहनाई गूंजने लगेंगी और मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। शहर में एक दर्जन से अधिक मैरिज गार्डन और होटल हैं। शादियों का सीजन पास होने से वैवाहिक कार्यक्रमों के लिए मैरिज गार्डन, हाल, होटलों की बुकिंग शुरू हो गई है। बुकिंग कराने के पहले लोग होटलों में अधिक स्पेस और अच्छी लोकेशन देख रहे है। इसी तरह ज्यादातर बड़े केटर्स के यहां बुकिंग की जा रही है। कम मुहूर्त होने से ज्यादा बुकिंग हो रही है।

होटल संचालकों, आयोजकों में है उत्साह 

शादियों को देखते हुए मेरिज, बैंक्वेट हॉल, भवनों तथा गार्डन-होटल संचालकों और आयोजकों में जबरदस्त उत्साह है। लोग शादियों की तैयारी में जुटे हैं। सोने, चांदी के आभूषण, राजस्थानी लहंगा-चुन्नी, साडिय़ा और अन्य परिधान सहित बर्तन, फर्नीचर की खरीद जारी है। मेंहदी, हल्दी, सगाई, पाणिग्रहण संस्कार और अन्य कार्यक्रम होंगे। कई जगह यह काम ईवेंट कम्पनियों ने संभाल रखा है। जिससे जिले इवेंट कंपनियों, डेकोरेटर्स की पूछ परख भी बढ़ रही है।

सराफा बाजार में लौटी रौनक 

शहर के सराफा बाजार में उत्साह छाया हुआ है। सोने-चांदी की दुकानों में विगत दिवस पुष्य नक्षत्र से रोकन देखी जा रही है। सराफा व्यापारी ने बताया कि दीवाली के पहले ही पुष्प नक्षत्र के संयोग से सराफा बाजार में अच्छा व्यापार हुआ है, दीवाली में भी सराफा में अच्छा व्यापार हुआ। लाइट वेट जेवरों की मांग अधिक है। अब देवउठनी ग्यारस है, जिसके बाद विवाह के आयोजन शुरू हो जाएगे। जिसके चलते सराफा बाजार में बेहतर व्यापार की उम्मीद है। मुहूर्त कम होने के कारण शादियां भी अधिक है। फिलहाल विवाह के लिये भी जेवर की ग्राहकी चल रही है। देवउठनी ग्यारस तक अच्छा व्यापार की उम्मीद जताई जा रही है।

तुलसी विवाह की परंपरा

इस साल देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।

पूजा का विशेष लाभ

देवश्यनी एकादशी के बाद से सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं, जो की देवउठनी एकादशी पर ही आकर फिर से शुरू होते हैं। इन चार महीनों के दौरान ही दिवाली मनाई जाती है, जिसमें भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णुजी के जागने के बाद देवी-देवता भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की एक साथ पूजा करके देव दिवाली मनाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से परिवार पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर सदैव धन, संपदा और वैभव की वर्षा करती हैं।

गन्ने से होती है पूजा 

देवउठनी एकादसी के दिन जब देवों को जगाया जाता है तो पूजा अर्चना में गन्ने का उपयोग किया जाता है। गन्ने से ही मंडप बनाया जाता है और उसके नीचे ही देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। एकादसी की पूजन के लिये एक दिन पहले ही गन्ने से पूरा शहर भरा पड़ा रहा। लोग पूजन के लिये गन्ना ले गए।


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