- वनवासी वर्षो से कर रहे अपने वन अधिकारों के लिए मशक्कत
- ग्राम सभा को मिलेगे सामुदायिक वनों के अधिकार
- मवई के वन संसाधनों पर अधिकार दिलाने प्रयास जारी
मंडला महावीर न्यूज 29. आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला के वनांचल और ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक वन अधिकार के दावे होने की संभावना है। सामुदायिक वन संसाधनों के संरक्षण एवं प्रबंधन के अधिकारों को मान्यता दिये जाने की कार्यवाही के लिए जिले के पेसा मोबालाईजर एवं जन अभियान परिषद का सहयोग लिया जा सकता है। इनके सहयोग से सामुदायिक वन संसाधन का संरक्षण, पुनरूजीवित और इनका प्रबंधन करने का अधिकार जो इनका संरक्षण कर रहे है, वे ग्राम सभाओं के माध्यम से वन अधिकार दावा कर सकते है।
जानकारी अनुसार आदिवासी समुदायों की आजीविका का प्रमुख साधन खेती, किसानी और जंगलों से मिलने वाले उत्पाद वनोपज हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षो से जनजातियां जंगल के माध्यम से अपनी आजीविका को चला पाने में परेशानी उठानी पड़ रही है। मंडला जिले के आदिवासी और अन्य परंपरागत वन निवासी, पीढिय़ों से वन भूमि पर खेती करते आ रहे हैं और कई वर्ष पहले उन्हें इसका अधिकार देने वाला कानून वन अधिकार अधिनियम भी बन गया है। जिसके बाद भी ये लोग बीते कई वर्षो से अपने वन अधिकारों के लिए मशक्कत कर रहे हैं।
मवई निवासी चरण परते ने बताया कि वन अधिकार अधिनियम 2006 (एफआरए) के तहत आदिवासी और वन निवासी समुदाय, वनों पर व्यक्तिगत अधिकार, सामुदायिक अधिकार और अन्य वन अधिकारों का दावा कर सकते हैं। इसके लिए उनका 13 दिसंबर 2005 या उससे पहले से इस वन भूमि पर काबिज होने की शर्त के साथ दावा कर सकता है। इन दावों की जांच पहले ग्रामसभा, उप-विभागीय स्तर और जिला स्तर पर की जाती है। यदि दावे को निरस्त किया जाता है तो इसका कारण दर्ज कर दावेदारों को सूचित किया जाता है जिससे वे इसके खिलाफ अपील कर सकें।
कई दावे अभी तक है लंबित
वन अधिकार कानून 2006 में बताया गया है कि सामुदायिक वन संसाधनों का संरक्षण, पुनर्जीवित या संरक्षित या प्रबंध करने का अधिकार जो सतत् व परम्परागत रूप से संरक्षण कर रहे हैं। यह दावा ग्राम सभा द्वारा सरकार की निर्धारित प्रपत्र (ग) में प्रस्तुत करना है। लेकिन मध्यप्रदेश में सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार का दावा करने वालों की संख्या बहुत ही कम है। कुछ दावे किये भी गए हैं तो वो जांच सत्यापन के स्तर लंबित है।
जिले की कुछ समितियों ने किया दावा
मूलसेवा समिति मवई के चरण परते ने कहा कि पखवाङ पंचायत के सखिया गांव द्वारा पूरी प्रक्रिया पूर्ण कर उपखंड स्तर समिति अध्यक्ष एसडीएम घुघरी को दिया जाना शेष है। मवई विकासखंड के रेंहगी, बहरमुंडा, सारसडोली, बिलगांव,मोहगांव, सुनेहरा, रेहटाखेङों, पोंडी आदि गांव में भी ग्राम स्तर पर प्रक्रिया जारी है। सामुदायिक वन संसाधनों पर समुदायिक दावा फार्म भरवाने में तकनीकी मदद बंगलूरू की एट्री संस्था दे रही है।
दावा प्रपत्र भरना जटिल
बताया गया कि 30 अक्टूबर 2024 को मध्यप्रदेश जनजातीय कार्य विभाग द्वारा पत्र लिखकर जिले के समस्त कलेक्टर और वन मंडलाधिकारी को कहा है कि ग्राम सभाओं को सामुदायिक वन अधिकार दावा दिये जाने की कार्यवाही सुनिश्चित करें, लेकिन दावा प्रपत्र को भरना एक जटिल कार्य है, इसमें आदिवासी विभाग, वन विभाग और समाजिक संस्थाओं का सक्रिय सहयोग आवश्यक है।
हजारों ग्राम जंगल की सीमा में बसे
मध्यप्रदेश वन अधिकार अधिनियम 2006 का एटलस बनाने वाला उङीसा के बाद दूसरा राज्य है। भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय के एफआरए (फोरेस्ट राईटस एक्ट) एटलस के अनुसार प्रदेश के कुल 25461 ग्रामों में एफआरए की संभावना है, जिसमें से 5018 ऐसे राजस्व ग्राम हैं, जिसकी सीमाओं के भीतर छोटे बड़े पेड़ों के जंगल हैं। 13709 ऐसे ग्राम हैं, जिनकी सीमा से जंगल लगे हैं तथा इन ग्रामों के भीतर भी छोटे बड़े पेड़ों के जंगल हैं। 5716 ऐसे ग्राम हैं, जिनकी सीमा से लगे जंगल है। जिनकी सूचियां भी जारी है।