मड़ई ब्याहनें पहुंचे पहुआ, उमड़ा जनसैलाब

  • मुख्यालय से शुरू मड़ई, परंपरिक पौशाक में रहे अहीर
  • मढ़ई ब्याहनें पहुंचे पहुआ, उमड़ा जनसैलाब

मंडला महावीर न्यूज 29. जिला मुख्यालय में इस वर्ष भी भाईदूज के अवसर पर राजराजेश्वरी वार्ड के कलंका बुर्ज के सामने मैदान में मढ़ई का आयोजन किया गया। जहां जगह की कमी देखने को मिली। पुरात्तव विभाग ने पुरातन धरोहर को संजोने के लिए बुर्ज का मरम्मतीकरण किया। आसपास बाऊंड्रीवॉल का निर्माण भी चल रहा है। मड़ई के लिए स्थल को एक दिन पहले ही नपा सफाई कर्मचारियों द्वारा साफ किया था। पहले से जगह निश्चित न रहने और दिवाली पर्व आ जाने के कारण सफाई कर्मचारी अवकाश पर रहे।

बताया गया कि शनिवार सुबह से रात तक मड़ई स्थल में सफाई का कार्य किया गया। मड़ई को लकर भारी उत्साह बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक देखा गया। सुबह से मढ़ई स्थल में दुकानें सजना शुरू हो गई। जिनमें देशी मिठाईयां, कपड़े, खिलौने, वाद्य यंत्र, सिंघाड़ा, कांदा जैसे अनेकों प्रतिष्ठान सजे, अनेकों प्रकार के झूले लगाए गए। शहर की मुख्य मड़ई होने के कारण शहर के आसपास के लोग मड़ई में एकत्रित होना शुरू हो गए और शाम 5 बजे से मढ़ई ने विशाल रूप ले लिया।

ब्याही गई मड़ई 

हाथों में चंडी लिए मानादेई, मड़ईखापा, माली मोहगांव, गौंझी, सुरंगदेवरी, देवदरा समेत अन्य जगहों से पहुआ मड़ई ब्याहने के लिए नेहरू स्मारक में एकत्रित हुए और किले घाट से भी पहुआ अहिर बंधु राजराजेश्वरी वार्ड मड़ई ब्याहने आए। वर्षो से मड़ई ब्याहने की यह परंपरा आज भी इनके द्वारा चलाई जा रही है। बांस में मौर के पंखों को लगाकर सजाया जाता है। जिसे लेकर पहुआ मैदान में पहुंचे। वहीं जंगली भैंस के सींग की ध्वनि करते हुए चण्डी ब्याहने पहुआ मैदान में आए और चंडी के आसपास घूमते हुए मढ़ई को ब्याहा। लोग उन पर चांवल व उड़द के दाना फैक रहे थे। जिससे उनके ऊपर बुरी आत्माओं का साया इन पहुआ के साथ चंडी अपने में समाहित कर ले। जिससे अनेकों रोगों, बुरी बलाओं से आम जनों को मुक्ति मिलती है।

पूजी गई गंगो दाई 

चंडी लगाने की एक परंपरा के चलते तालाबों में मिलने वाले गुदला कांदा को बारीक-बारीक काटकर और फूल मालाओं के साथ बांस में बांधा जाता है। जिसे चबंटी गंगो दाई भी कहते है। एक दोरी में गंगो दाई को सवार कराकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है। किले घाट से पानी पिलाकर सीधे मढ़ई के बीच में लाया गया। जिनके आसपास घूमते हुए चकौड़ा बीज, उड़द दाल, चांवल छिडक़ते हुए आशीर्वाद लिया। कहा जाता है चंडी में सभी चंडी देवियों का वास होता है। यादव समाज के साथ-साथ इसमें सम्मिलित होने वाले आदिवासी बंधु भी बड़े उत्साह से चंडी की पूजा अर्चना करते है और गंगो दाई को पूजते है। मड़ई को ब्याहते हुए अनेक अहिर बंधुओं के साथ महिलाओं को भी भाव का अहसास होने लगता है।

परंपरिक पौषाक में रहे अहीर 

प्रत्येक वर्षो की तरह इस वर्ष भी कोड़ी की माला को गाय के बालों में गुथकर उसके जेवर बनाए जाते है तथा वहीं कोड़ी को कपड़े में गुथकर छाला बनाया जाता है। जिसे पहनकर अहिर बंधुओं के द्वारा नाचा जाता है। पैर में घुघरू, तोरण पहनकर थाली व मादर की आवाज के साथ जब अहिर नृत्य होता है। जिसे देख लोग स्वयं को झूमने से नहीं रोक पाते। इनकी यह वेशभूषा दीवारी दोहा के साथ चार चांद लगा देती है।

अब शुरू होगी मढ़ई 

भाईदूज के दिन मंडला मढ़ई के बाद जिले के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में मढ़ई की शुरूआत हुई। जिनमें बिनैका, जंतीपुर, सेमरखापा, बम्हनी, सहस्त्रधारा, राजीव कालोनी देवदरा, घोड़ा घाट, सीता रपटन, सतबहनी, रामनगर, छिगराघाट आदि की मढ़ई प्रमुख है। प्रत्येक ग्रामीण अंचलों में भी तिथि अनुसार मढ़ई के आयोजन होंगे।

मड़ई में अव्यवस्था 

इस बार भी मड़ई में अव्यवस्थाएं व्याप्त रही। पहुंच मार्ग में सकरा होने के कारण जाम की स्थिति बनी रही। किले तक पहुंचने के लिए एक मात्र रास्ता है। जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। महाराजपुर पुरवा से भी लोग नाव से नर्मदा जी पार कर मड़ई का आनंद लेने पहुंचे।


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