घर-घर पहुंची अहीरों की टोली

  • घर-घर पहुंची अहीरों की टोली
  • परंपरिक वेशभूषा और बैंड, बाजों की धुन में किया नृत्य

मंडला महावीर न्यूज 29. पारंपरिक वेशभूषा और बैंड बाजों की धुन में मदमस्त होकर नृत्य करते अहीरों की टोली के गीत की धुन सुनने वाले को भी थिरकने से रोक नहीं सकता है। अहीर नृत्य परंपरागत रूप से आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में देखने मिलता है। जिले में यह परंपरा कई वर्षो से चली आ रही है। जिले के हर ग्रामों में अहीरी नृत्य की टोलियां दुकानों और घरों में जाकर परम्परा अनुसार नृत्य करते है। दीवाली और अमावस्या की रात से प्रारंभ अहीरों की यह परंपरा मड़ई मेलों के समापन तक जारी रहता है।

बताया गया कि दीपावली की रात में पूजा अर्चना के बाद यादव समाज के लोग अहीर की परंपरागत वेशभूषा धारण कर आशीष देने घर घर पहुंचे। जिसके बाद अहीर की टोली का घर-घर पहुंचने का दौर अब शुरू हो गया है। दीपावली के दूसरे दिन शुक्रवार की सुबह 9 बजे से अहीरों की टोली नृत्य करते हुए घर, दुकानों व प्रतिष्ठानो में पहुंचकर आशीष दिए। बैंडबाजे की धुन में नृत्य करती अहीर की टोली को देखने के लिए लोग भी उत्साहित रहते हैं। आगामी दिनो में भी जिले के विभिन्न क्षेत्र में लगने वाली मड़ई की शुरूआत चंडी पूजा के साथ अहीर ही करेंगे हैं।

राजेश यादव ने बताया कि अहीर नृत्य के लिए जिन परंपरागत वस्त्रों को धारण किया जाता है, उसकी पहले पूजा की जाती है। पूजा के बाद अहीर परंपरा अनुसार उस विशेष वस्त्र को धारण करके घर-घर और प्रतिष्ठानों में जाकर देव को जगाते है और लोग अहीरों की टोली को उपहार भेंट करके विदा करते है। यह सिलसिला जिले में आयोजित होने वाले मड़ई मेलों के समापन तक चलता रहता है। बताया गया कि ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुल वासियों के जीवन की रक्षा की थी। इस दौरान गोवर्धन पर्वत का भी पूजन किया जाता है।

अहीर कोडिय़ों से करते है श्रृंगार 

अहीरों की टोली दीवाली की रात से जिला मुख्यालय समेत ग्रामीण अंचलों में अपने परंपरिक वेशभूषा में सज धज कर निकलते है। उनके साथ गाजे-बाजे बजाने वाले भी साथ चलते है। श्रृंगार में अहीरी वेशभूषा आकर्षण का केन्द्र रहती है जो कोडिय़ों से जड़ी रहती है। नृत्य के दौरान बांसुरी वादन के साथ नृत्य करते हुए गीतों की प्रस्तुति लोगों का मनमोह लेती है।


 

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