- श्रीहरि की कृपा पाने श्रृद्धालु करते है कार्तिक स्नान
- चार प्रकार के होते है स्नान, कार्तिक माह में स्नान करने से होती है मानसिक और शरीरिक शुद्धि
मंडला महावीर न्यूज 29. कार्तिक माह को धार्मिक दृष्टि से बहुत ही पुण्यदायी माना गया है। इस महीने में पवित्र नदी में स्नान दान तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है। कई साधक भगवान श्री हरि की कृपा प्राप्ति के लिए कार्तिक माह में प्रतिदिन स्नान करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के बाद कार्तिक मास की शुरुआत हो जाती है। यह महीना भगवान विष्णु का प्रिय महीना भी माना जाता है, इसलिए यह माह विष्णु जी की आराधना के लिए समर्पित है। इसके साथ ही इस माह को तप और व्रत का माह भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की समाप्ति के साथ ही कार्तिक माह का शुभारंभ हो जाता है, इस वर्ष कार्तिक मास की शुरुआत 18 अक्टूबर से हुई, जिसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन 15 नवंबर को होगा।
पंडित विजयानंद शास्त्री ने बताया कि कार्तिक माह में स्नान की अपनी अलग महिमा है, इस माह ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान से जहां पुण्य लाभ अर्जित होता है वहीं इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। बताया गया कि सूर्य उदय के पूर्व जो भी व्यक्ति कार्तिक माह में स्नान करता है उसकी शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि होती है और वह शरीर एवं मन से वर्ष भर पूर्ण रूप से स्वस्थ्य रहता है। इस पवित्र माह में जिले की महिलाएं सामूहिक रूप से नर्मदा घाटों में स्नान के लिए जाती है और स्नान के बाद भगवान का पूजन अर्चन विधि विधान से करती हैं। पूजन के दौरान विभिन्न तरह की कथाओं का श्रवण भी कराया जाता है।
कार्तिक स्नान का महत्व
कार्तिक स्नान आश्विन माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर कार्तिक माह की पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस पवित्र स्नान को आरंभ करने से पहले आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आने पर भगवान विष्णु को प्रणाम कर कार्तिक व्रत करने की आज्ञा लेनी चाहिए। इस तरह से आज्ञा लेने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त पर कृपा कर उसे आत्मिक बल व मनोबल प्रदान करते हैं। इसके साथ ही ईश्वर अपने भक्त को विधिपूर्वक कार्तिक व्रत करने की सद्बुद्धि देते हैं।
सभी बारह मासों में मार्गशीर्ष मास को अत्यन्त पुण्यदायक कहा गया है, उससे भी अधिक पुण्य देने वाला वैशाख मास कहा गया है। प्रयाग में माघ मास का अधिक महत्व है और इससे भी महान व अधिक फलदायी कार्तिक मास को कहा गया है। जब ब्रह्मा जी ने एक तरफ सभी प्रकार के दान, व्रत व नियम रखे और दूसरी ओर कार्तिक का स्नान रखकर तौला तो कार्तिक स्नान का पलड़ा ही भारी पाया।
ईश्वर को प्रसन्न और यम यातना से बचने नियम से करें स्नान
भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए आश्विन की पूर्णिमा से लेकर कार्तिक की पूर्णिमा तक प्रतिदिन गंगा जी में स्नान करना चाहिए। यदि गंगा जी नहीं है तब किसी भी नदी, तालाब व पोखर आदि में कार्तिक स्नान करना चाहिए। यदि कुछ भी नहीं है तब नियमित रुप से घर पर ही स्नान करना चाहिए। देवी पक्ष अर्थात भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की महारात्रि आने तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आश्विन कृष्ण चतुर्थी से लेकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तक नियमपूर्वक स्नान करना चाहिए। भगवान जनार्दन को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। जो मनुष्य जाने-अनजाने कार्तिक मास में नियम से स्नान करते हैं, उन्हें कभी यम-यातना को नहीं देखना पड़ता।
पवित्र नदियों का ध्यान कर करें स्नान
कार्तिक मास में तुलसी के पौधे के नीचे राधा-कृष्ण की मूर्ति रखकर पूरे भाव के साथ पूजा करनी चाहिए। यदि आंवले का पेड़ है तब उसके नीचे भी राधा-कृष्ण की मूर्ति रखकर पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करना चाहिए। विधिपूर्वक स्नान करने के लिए जब दो घड़ी रात बाकी बच जाए तब तुलसी की मिट्टी, वस्त्र और कलश लेकर जलाशय या गंगा तट व पवित्र नदी के किनारे जाकर पैर धोने चाहिए और गंगा जी के साथ अन्य पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए विष्णु, शिव आदि देवताओं का ध्यान करना चाहिए। उसके बाद नाभि तक जल में खड़े होकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए – हे जनार्दन देवेश्वर ! लक्ष्मी सहित आपकी प्रसन्नता के लिए मैं कार्तिक प्रात: स्नान करुँगा। आप मेरे द्वारा दिये गये इस अध्र्य को श्रीराधाजी सहित स्वीकार करें। हे हरे! आप कमलनाभ को नमस्कार है, जल में शयन करने वाले आप नारायण को नमस्कार है। इस अध्र्य को स्वीकार कीजिए। आपको बारम्बार नमस्कार है।
ब्रम्ह मूहुर्त का स्नान उत्तम
व्यक्ति किसी भी जलाशय में स्नान करे, उसे स्नान करते समय गंगा जी का ही ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले मिट्टी आदि से स्नान कर ऋचाओं द्वारा अपने मस्तक पर अभिषेक करें। अघमर्षण और स्नानांग तर्पण करें और पुरुष सूक्त द्वारा अपने सिर पर जल छिड़कें। इसके बाद जल से बाहर निकलकर दुबारा अपने मस्तक पर आचमन करना चाहिए और कपड़े बदलने चाहिए। कपड़े बदलने के बाद तिलक आदि लगाना चाहिए। जब कुछ रात बाकी रह जाए तब स्नान किया जाना चाहिए क्योंकि यही स्नान उत्तम कहलाता है और भगवान विष्णु को पूर्ण रूप से संतुष्ट करता है। सूर्योदय काल में किया गया स्नान मध्यम स्नान कहलाता है। कृत्तिका अस्त होने से पहले तक का स्नान उत्तम माना जाता है। बहुत देर से किया गया स्नान कार्तिक स्नान नहीं माना जाता है।
चार प्रकार के होते है स्नान
मनीषियों द्वारा चार प्रकार के स्नान बताए गए हैं। जिसमें पहला वायव्य स्नान, जिस स्नान को गोधूलि द्वारा किया जाए वह वायव्य स्नान कहलाता है। दूसरा स्नान वारुण स्नान, जो स्नान समुद्र आदि के जल से किया जाए वह वारुण स्नान कहलाता है। तीसरा स्नान ब्राह्म स्नान, वेद मन्त्रों के उच्चारण के साथ जो स्नान किया जाता है उसे ब्राह्म स्नान कहते हैं। चौथा स्नान दिव्य स्नान, मेघों व सूर्य की किरणों द्वारा जो जल शरीर पर गिरता है उसे दिव्य स्नान कहा जाता है।
कार्तिक माह में स्नान विशेष महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह में भगवान विष्णु मत्स्य के रूप में जल में निवास करते हैं। ऐसे में कार्तिक महीने में सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप धुल जाते हैं।
पंडित विजयानंद शास्त्री
बम्हनी बंजर, मंडला