- कन्या होती है देवी का स्वरूप
- दस वर्ष तक की कन्याओं का किया जाता है पूजन
- घर-घर और देवी पंडालों में हुआ कन्या पूजन
- दिन भर चलता रहा कन्या भोज का दौर
- नवरात्र में कुमारी कन्या पूजन का विशेष महत्व
मंडला महावीर न्यूज 29. नवरात्र के नौ दिनों तक माँ भवानी की भक्ति आराधना की जाती है। माँ दुर्गा का आर्शीवाद लेने नवरात्र में कन्या पूजा का विधान है। नवरात्र का अनुष्ठान कन्या पूजन के साथ ही पूरा होता है। नवरात्र की अष्टमी से कन्या पूजन का दौर शुरू हो जाता है। घर-घर और देवी पंडालों में नवमीं के दिन कन्या पूजन एवं कन्या भोज कराया गया। देवी व्रत में कुमारी कन्या पूजन का महत्वपूर्ण महत्व बताया गया है।
शास्त्रों में बताया गया कि एक कन्या के पूजन से ऐश्वर्य की, दो की पूजा से भोग और मोक्ष की, तीन की आर्चना से धर्म, अर्थ, काम, त्रिवर्ग की, चार की अर्चना से राज्य पद की, पांच की पूजा से विद्या की, छ: की पूजा से सिद्धि की, सात की पूजा से राज्य की, आठ की पूजा से संपदा की और नौ कुमारी कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। कन्याओं को देवी स्वरूप माना गया है। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या रोहणी, छ: वर्ष की कन्या काली, सात वर्ष की कन्या चंडिका, आठ वर्ष की कन्या शांभवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा स्वरूप होती है। कन्या पूजन में दस वर्ष तक की आयु की कन्याओं का पूजन किया जाता है।